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तंडुल
१०॥
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E विपासपडिबदिं कामरागमोदेहिं विन्निान तानवि एयारिमान, तं जड़ा
पगाविसमा, कत्तिव बडुवयसालान, अवचहसियत्नासियविलासविसंतनूमीन, अविरायवातोलिन, मोहमदावतणीन, पियवयवल्लरीन, कश्चयपेमगिरितडीन, अवराहसह| तारो पोतानो तो गंध डे ॥३७॥ वळी पा स्त्रीन के जेननु विविध पासमा बंधायेला तथा कामरागथी मोहित श्रयेला एवा अनेक हजारोग में कविनए वर्णन कर्य बे, ते स्त्रीनप. ण प्रावी , ते कहे -
(ते स्त्री) स्वन्नावधीज विषम, केटलांक चाटु वचनोनी शालासरखी, न वर्णवीश- काय तेवां दास्य, वचन, विलास, तथा विश्वासनी नूमीसमान, विनयरहित वातो करनारी, मोहना मोटा आवर्नरूप, प्रिय वचनोनी वेलमीसरखो, केटलाक प्रकारना प्रेमरूपी प.
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