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तंडुलणं गप्रगए समाणे सन्निपंचेंदिए सबाहिं पजत्तीहिं पजत्तए, वीरीयलहीए, विप्रंगनाणसीए,
वेनवीयलहीए पत्तो पराणीयं आगयं सुच्चा निसम्म पएस निदेश, वेनवियसमुग्घाएणं सम्मोहण, सम्मोहणित्ता चानरंगीरा लेणं सन्नादेश, सन्नदत्ता पराणीएण य ससिंगामे, सेणं जीवे अञ्चकामए, रजकामए, नोगकामए, कामकामए, अखिए, रजकंखिए, नो.
आनप्राण ४, नापा ५ तथा मन)। सघळी उपर्याप्तिनश्री पर्याप्त अयोग्रको. वीर्यलB] ब्धि, विनंगज्ञानलब्धि, तथा वैक्रियलब्धिने प्राप्त श्रयायको, शत्रुनु सैन्य (आवेलु कोश्क- |
ना मुखग्री ) सानळीने, ते गगत जीव पाताना वैक्रियप्रदेशोने बहार कहामे , तथा वै. ॥१७॥ क्रियसमुद्रात करे , एवीरीते वैक्रियसमुद्रात करीने ते चतुरंगी सैन्यने सज कर ठे, तथा ME तमकरीन शत्रुना सैन्यसाग्रे त संग्राम करे उ. ते जीव (ते समये ) धननो अनिलाबी,
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