SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलका वावि सुमिरिकया || तारे नरं व नारी वा । सव्वं पुत्रेदि वह ।। २५॥ पुत्रेहिं हीयमा. 18 अर्थः हिं । पुरिमागारोवि हाय ॥ पुनेदि वट्टमाणेहिं । पुरिमागरीवि बट्टा ॥ २६ ॥ पुत्राई । ॥३६॥ खलु आनसो किच्चाई करणीमाई पोयंकराई, वमकराई, धमकराई, जमकराई, किनिकरा राथी हवे बीजं कंपार न पाय तो सारूं. ॥श्या जाति, कुल, अथवा सारीरीते शिखेली विद्या पण पुरुष अथवा स्त्रीने तार। शकतां नश्री, परंतु सर्वप्रकारनी समृहि पुण्योश्री वृ हि पामे ठे. ॥ २५ ॥ पुण्य ज्यारे दीन थाय, त्यारे पुरुपातन पण हीन पाय , तथा पु. El एय ज्यारे वृद्धि पामे, स्यारे पुरुषातन पण वृहि पामे ठे. ॥ २३ ॥ बळी दे आयुष्मन ! पु- En | एयनां कार्यों करवालायक, प्रीति करनारां शोना करनारा, धन करनारा, जश करनारा त. श्रा कीर्नि करनारा दे. परंतु दे प्रायष्मन! खरेग्वर एम न चिंतन जाइये के घणा एवा FEL196316104SESE 1646439F " For Private and Personal Use Only
SR No.020806
Book TitleTandul Vaiyalia Payanna Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Hiralal Hansraj
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1911
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy