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तंदुल
॥ ६२ ॥
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. बत्तीसं कवला पुरिसस्स आहारो, अट्ठावीसं इन्डियाए, चनवीसं नपुंसगस्स, एवमेव सो एयाए गलाए दोश्रसन पसइ, दोपसइन सेइयां होइ, चनारि सेइया कुमन, चनारि कुडया पचो, चत्तारि पश्चा श्राढगं, सठ्ठीए ग्राढगाणं जहन्नए कुंने, असीर प्राढगाणं मनिमे कुंजे, आढगलयं नकोस कुंजे, श्रदेव आढगसयाणि बाढा. एएवं बाइप्पमाणं लीया स्त्रीनो आहार होय वे, तथा चोवीस कोलीया नपुंसकनो आहार होय बे. एवीरीते हे आयुष्मन् ! प्रमुजब गणत्रोथी वे हथेलीनी पसली ग्रॉय, बे पललीजनी सेतिका धाय, चार सेतिकानो एक कुडवक बाय चार कुडवकोनो एक प्रस्थ थाय, चार प्रस्थोनो एक आढक ग्राय, साठ आठकोनो एक जघन्य कुंज थाय, ऐसी श्राढकोनो एक मध्यम कुंज श्राय, अने एकलो आटकोनो एक उत्कुष्टो कुंज श्राय, आउसो प्राढकोनी एक बादा श्राय,
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अर्थः
।। ६२ ।।