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विविधिविधिधियं च बीन॥३०॥ पागडियवासुलियं । विगरावं सुक्कसंधिसंधायं ॥ पडियं निवेयणयं । सरीरमेयारिसं जाण ॥३१॥ वच्चाइहि असुश्तरे । नवहिं सोएहि परिगितेहिं । आमगमल्लगरूवे । निवेयं वद सरीरे ॥ ३२ ॥ दो हवा दो पाया | सीसं नवं
(पकिनना फाडवाश्री ) जण जरा शब्द करतुं, सडसमाट शब्दपूर्वक त्रुटता मांसबालु, कलबलाट करता कीडानवालुं, अने (ते पदिननी चांचोना ऊपाटाथ। ) थरथराट करतुंचकुं महा बोनस लागे ॥३०॥ वळी खस्त्री पमीगयल ने पासळी जेमांधी एq महा नयानक, सुकाइगयेल संधिनना सांधावालुं, एवीरीतना हालवालुं निश्चेतन (जीवरहित) पमेलुं शरीर जाणवू ॥३॥नव हारोश्री अवता एवा विष्टादिक पदार्थोश्री अत्यंत अंशुचि अयेला तथा काचां सरावलांसरखा ा शरीरनेविषे तुं निर्वेद ( वैराग्य ) पा-EI
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