Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 112
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ ११० ॥ www.kobatirth.org सिपियाइएहिं पुरिसे मोदतिनि महेलियान, पुरिमे मने करतित्ति पमयानु, महिति कलिं जलयंतिति महिलान, पुरिसे दावजावमाइएदिं रमेतिति रामान, पुरिसे श्रंगाणुगए करंतिति अंगलान, नाणाविदेसु जुइनंमल संगामाडवीसु सिसिरगिासी नन्द उरक किले समाइएसुपुरिसे लालतिनि खानु, पुरिसेनेगनिनुगेहिं बने वानिति जोसीयान, पुरिने नायथी पुरुषने मोह नृपजांब बे, माटे 'महिला, पुरुषने मदोन्मत्त करे माटे प्रमदा, महिंति एटले केश उपजावे बे माटे 'महेला', पुरुषनीसाथ दावजाव श्रादिकथी रमे वे माटे 'रामा', पुरुषोने ( पोताना ) अंगप्रते अनुराग नृपजांब वे माटे 'अंगना', विविधप्रकारनां युद्ध, जंडन, संग्राम, तथा वनमां शिशिर तथा ग्रीष्म रुतुथी उत्पन्न ती ठंडी तथा गरमी उत्पन्न तां दुःख तथा क्लेश श्रादिकमां पुरुषोनुं लालन करे व माटे लखना For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir • , 2: ܘ ܐ ܕ ܐ

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