Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 113
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तंडुल० याविहेहिं नावहिं वमंतित वणियान, काइन पमनावं, काइ पणयं सवितम, कास. यं सामिव ववदरंति, काइ सतुमरोश्व, काइ पाएसु पणमंति, कानवमंति, कानपनसंति, का सुकमरकनिरिस्कएदि, सवितासमहुरेहिं नवहसिएहिं, नवगदिएहि, नवस हिं, पुरुषोने अनेक प्रकारना नपायोश्री वश करे माटे · योषित, ' पुरुषोमते नानाप्रकारनो वि|नय करे माटे 'वनिता.' ( हवे पुरुषोने जे जे नावोश्री स्त्री वश करे ते कई ब) कोक स्त्री मदोन्मत्नपणाश्री, कोक प्रेमसहित विलासयी, तश्रा केटलीक पोतेज (जर्तारपर ) स्वामिपणानो व्यवहार (हुकम ) चलाद ने. कोइक शत्रुलावधी ( पुरुषनो घात कर ठे), कोश्क पगे पछेउ, कोइक नपनय करे , केटलीक ( कोई वस्तुनी) नेट करे के. वळी केटलीक कटाक्षपूर्वक जोवाश्री, विलासयुक्त मधुर उपहासथी, (विविधप्रकारनां) - ANJURESSIFIEDEHEYESEEJngh ॥१११ : BFt For Private and Personal Use Only

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