Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir
डुल
॥
॥
361393EHEJFFIFESSFURNE961
जाय जहवञ्च किमिनन्द ।। ५ ॥ तंदाणि सोयणं । केरिसयं होश तस्स जीवस्त ॥ सुक्क- अर्थः रुदिरागवसन । जस्सुप्पत्ती सरीरस्त ॥ ६ ॥ एयारिसे सरीरे । कलमलनरिए अमीप्रसंन्न| ए ॥ निययं विगणितं । सोयमयं केरिसं तस्स ॥॥ आनसो! एवं जायस्त जंतुस्स नुत्पत्ति वीर्य अने रुधिरना मिश्रणथी नत्पन्न अयेली , ते शरीरने शौच (पवित्र ) करवापणुं ते केवुक था शके? ( श्रीहेमचंशचार्यानीए पण कह्यु के-नवश्रोत्रश्रयश्चि-रसनिस्पंदनिश्चले ॥ देहे यः शौचसंकटपो । महन्मोहविगॅनितं ॥१॥)॥६॥ एवारीतर्नु अत्यंत मेखथी नरेलु तथा विष्टामां नत्पन्न थयेलुं शरीर होते बते, ते शरीरने ममत्वन्नाव- En | थी पोतानुं गणीने पवित्र केवी रीते मानवू जोश्ये!! ॥ ७ ॥ वळी हे आयुष्मन् । ते नुत्पन्न श्रयेला जीवनी (नीचेमुजब) वीरीतनी दश दशान कहेवायले, ते आप्रमाणे-बा
FRIEFINIFIELDINE3%8
For Private and Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122