Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir # तंडुल तीसूणाईचीयाए, बीसूणाई पंडगस्स. अप्रिंतरं स कुशिमं । जो परियत्तोन बाहिरं कुला ॥ तं असुई दणं । सयावि जगणी गंग्झिा ॥१॥ माणुस्सयं सरीरं । पूश्यं मंससुक्कर| HEME हिरेणं । परिसंपवियं सोहा । बजेण य गंधमलेण ॥२॥ इमं चेव य सरीरं सीसघडी मेयमद्यमंसठियमलिंगमोनियतमयं चम्मकोसं नासिचारसो सित्तर मांसपेसी होय, तथा नपुंसकने वीस नगे एटले चारसो एंसी होय. हवे श्रा शरीरनी अंदर जे अशुचि पदार्थो नरेला , तेने नलटावीने जो बहार करवामां श्रावे, तो ते अशुचिने जोड्ने पोतानी माता पण गंग करे ॥१॥आ मनुष्यसंबंधि शरीर मांस वीर्य तथा रुधिरथी नरेलु , मात्र वस्तथी तथा सुगंधि पदार्थों अने पुष्पमालानश्री (शणगार्याधी)ते शोल्ने ॥२॥ RBELIEWARENEUR 所排开並非事事非非正查中上书4F44## ॥ G For Private and Personal Use Only

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