Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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तंदुल
॥ ६५ ॥
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जलियं मदरिसीडिं, जस्सति तस्स गणिकर, जस्स नत्रि तस्स किं गलिइ ? ववदारम्लियं दिहं । सुमं निचयगयं मुणेयच ॥ जइ एयं नवि एयं । विसमा गलसा मुणेयश्वा || ॥ १ ॥ कालो परमनिरुद्धो । प्रविज्ञतं तु जाण समयं तु ॥ समया य प्रसंखिता । दवंति नस्सासनीसासे || २ || दस्म प्रणवगलस्स । निरुवहिस्स जंतुलो ॥ एगे कमा
तेनुं तो गलीशकाय रे, परंतु जेने ते नथी, तेनुं शुं गलीशकाय ? एवीरीतें ( बादर एi) व्यवहारगति देखाडयुं, अने निश्वयनयनुं गणित तो सूक्ष्म जाणवु, माटे जो एम न दोय तो ते गणित विषम जाणवुं ॥ १ ॥ काल अत्यंत सूक्ष्म बे, हवे जे कालना बे जागो न बाके तेने समय जालवो, अने तेवा असंख्याता समयो एक श्वासोश्वासमां थाय बे. ॥ २ ॥ नंदमा रहेलो, निरोगी तथा चिंतादिक क्लेश विनानो, एवा प्रालीना एक श्वासो
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अर्थ:
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