Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra तंडुल ॥ १३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir न व सुलहा वासस्यजीवी || २३ || एवं निस्सारे मणुसनले । जीविए अ विहति ॥ न करे चरणधम्मं । पन्ना पच्चाणुतप्पिहृदि ॥ २४ ॥ घुमि सयं मोहे । जिलेहिं वरधम्मतिमग्गस्स || अत्ताच न याराह । जायाए कम्मभूमीए || २५ || नइवेगसमं चवलं । जीवियं जुबां च कुसुमसमं ॥ सुखं च जम्मनियतं । तिन्निवि तुरमाणाभुजाई || २६ || || २३ || एवीरी असार मनुष्यपणुं होते बते, तथा श्रायु ( कले क्षणे ) विनष्ट होते बते व्य! जो तुं चारित्रधर्म करो नही तो पढी पश्चाताप पामीश ॥ २४ ॥ मदा सम एवा जिनेश्वरोए पोते पण मोहने जीतीने घर्मतीर्थनो मार्ग स्वीकार्यों वे, तो हे नव्य! तुं आ कर्मभूमिमां उत्पन्न थइने पोताना श्रात्मानी पण सारसंजाळ करतो नथी । ॥ २५ ॥ श्रा जींदगी नदीना वेगसरखी चपल बे, तथा रौवनपणुं पुष्पनीपेठे (विनश्वर बे) For Private and Personal Use Only वर्थः ।।। ७३ ।।

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