Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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अग्रः'
॥10॥
तंडुलः स्मामो. तो किम पानमो नो एवं चिंतेयचं नवs, अंतरायबहुले खलु अयं जीविए, इमे
E बहवे वाश्य पिनिय सिंन्निय मनिवाश्य विविड़ा रोगायंका फुमंति जीवियं. प्रासित खलु
पानसो णुया नवगयरोगायंका बहुवाममयमदस्मजीविणो, तं जहा-जुयलधम्मिया अरिहंता का चक्कट्टि वा बलदेना वा वासुदेवा वा चारणा विकाहरा, ते गं म
कारवाला, पिनना विकारवाला, श्ष्मना विकारवाला, नासन्निपातपादिक विविध रोगोना घELणाजयो बाजींदगानीने (जोखममा नाखनारा) प्रात्रीपडले.वळी हे आयुष्मन! पर्वकालनेविषे
खरेखर मनुष्यो रोगसंबंधि नयविनाना तथा घणा साखो वर्षासुधि जीवनारा हता.ते नीचप्र माणे-युगलधर्मवाळा (जुगलीयां ) अरिहंतो, चक्रवर्निन, बले देवो, वासुदवा, चारणकषिन,
विद्याधरो. वळी ते मनुष्या अत्यंत शांत अने मनोहर रूपवाळा, नत्तमनोगोवाळा
INDIH
॥३॥
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