Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुलणं गप्रगए समाणे सन्निपंचेंदिए सबाहिं पजत्तीहिं पजत्तए, वीरीयलहीए, विप्रंगनाणसीए, वेनवीयलहीए पत्तो पराणीयं आगयं सुच्चा निसम्म पएस निदेश, वेनवियसमुग्घाएणं सम्मोहण, सम्मोहणित्ता चानरंगीरा लेणं सन्नादेश, सन्नदत्ता पराणीएण य ससिंगामे, सेणं जीवे अञ्चकामए, रजकामए, नोगकामए, कामकामए, अखिए, रजकंखिए, नो. आनप्राण ४, नापा ५ तथा मन)। सघळी उपर्याप्तिनश्री पर्याप्त अयोग्रको. वीर्यलB] ब्धि, विनंगज्ञानलब्धि, तथा वैक्रियलब्धिने प्राप्त श्रयायको, शत्रुनु सैन्य (आवेलु कोश्क- | ना मुखग्री ) सानळीने, ते गगत जीव पाताना वैक्रियप्रदेशोने बहार कहामे , तथा वै. ॥१७॥ क्रियसमुद्रात करे , एवीरीते वैक्रियसमुद्रात करीने ते चतुरंगी सैन्यने सज कर ठे, तथा ME तमकरीन शत्रुना सैन्यसाग्रे त संग्राम करे उ. ते जीव (ते समये ) धननो अनिलाबी, 19.1AFHIGHEAFFIFAEHE 941RESHIFA FOFFIFIEatakaEFEEL For Private and Personal Use Only

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