Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तंडुल० । जागरमालीए जागरइ भनो । सुहियाई होइ सुदिन । दुहियाई दुद्दिन होइ ॥ २ ॥ - चारे पावणे । खेले सिंचालनवि से नहि ॥ श्रही अहीमा । नहकेससमंसुरोम परिणामा ॥ २५ ॥ ६ ॥ ३ ॥ एवं बुंदिमइगन । गने संवसइ दुस्कियो जीवो ॥ परमतमसंघयारे । श्रमिश्रजरिए प एमि || ४ || हे आकलो ! तनुं नवमे मासेतीए वा, पडुपन्ने वा, अलागए वा, चनन्दं मापण सूए, तथा जागते बते जागे, सुखी होते बते सुखी होय अने दुःखी होते ते दुःखी होय. ॥ २ ॥ वळी ते गर्जने विष्टा, मूत्र, थुंक, तथा श्लेष्म होतां नथी, मांटे तेने हाडका, हाडकानी अंदरनी मक्का, नख, केश, दाढीमुळ तथा रोमरूपे (आहार) प रिलमे बे. ॥ ३ ॥ एवीरीते शरीरपणाने प्राप्त बयेलो ते जीव दुःखित अयोधको अत्यंत - कारवाळा, तथा विष्टाथी नरेला प्रदेशवाळा गजवानी अंदर रहे बे. ॥ ४ ॥ हे आयुष्म For Private and Personal Use Only मर्थः

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