Book Title: Tandul Vaiyalia Payanna Sarth
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तंडुल ॥ २१॥ .-49HIFIESEASikarakAERIFM. क्वलंका, गोयमा! जेणं जाणं गनगए समाण सनीपंचिंदि सवादि पजनीहिं पजनए वेनवियलहीए, वीरीयलड़ीए, नदिनागलादीए तहारुवस्स समस्त वा माहास्स वा अंति. ए एगमिव आयरियं धम्मियं सवय सुच्चा निसम्म, तन सजवतीबसंवेगसंजायला दे जगवन ! एम शा हेतुथी कडेवामां आवे ने के, केटलाक (देवलोकमां) नपजे, अने केटलाक न पण नुपजे. (त्यारे जगवान् कहे डे के) हे गौतम! जे जीव गन्नमा रह्योश्रको सनिपंचेंश्यि, सर्व पर्याप्तिनथी पर्याप्त अयोधको, वैक्रियलब्धिवाळो, वीर्यसधिवाळो, तथा अवधिशाननी लब्धिवाळो बयोधको, तेवा प्रकारना साधु अथवा ब्राह्मणनीपाले एक प. नत्तम धर्मसंबंधि वचन सांजळीने, तेश्री ते. तीव्र संवेगवाळो श्र३, धर्मपर अजवान श्रइ. तीव्रपणे धर्मना अनुरागमा रक्त धाय ने. (अने तेथी) ते जीव धर्मनो अनिलाषी, पु 4444438929899EHERESENSE ॥ १ ॥ For Private and Personal Use Only

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