Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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हैं । सभागार है, अतिथिशाला है । विद्वानों के प्रवचन, प्रतियोगिताएं और सामूहिक महामंत्र पाठ नियमित रूप से होते रहते हैं। मेरे ये दो शब्द तो एक संकेत मात्र है। मुझे विश्वास है उत्तर-दक्षिण के मिलान का यह सिलसिला चलता रहेगा ।
दक्षिण भारत विशेषतया तमिलनाडु में करीबन ३०० प्राचीन जिनमन्दिर है । प्राचीन गुफाओं में बने साधुओं के शयनागार एवं विशाल चट्टानों पर लिखित आगम रत्नत्रय का मूर्तिमान रूप उपस्थित करते हैं । यहाँ पर आचार्य गुरुवर कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, मल्लिसेन, पुष्पदंत, अकलंकदेव आदि आचार्यों ने जन्म लिया और तप किया । इन ३०० प्राचीन जिनमन्दिरों में से अनेक मन्दिर १५००-२००० वर्ष प्राचीन है। जो वर्तमान में जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है । इन प्राचीन मन्दिरों की धरोहर की रक्षा के लिए जीर्णोद्धार के कार्यों में और गति प्रदान करने की अत्यन्त आवश्यकता है
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इन जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों के तुरन्त जीर्णोद्धार के लिए आर्थिक साधनों की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि हमारी अमूल्य प्राचीन संस्कृति की रक्षा की जा सके। इस स्मारिका के द्वारा हमने देश के समस्त भागों में पूर्ण जैन समाज को तमिलनाडु के प्राचीन मन्दिरों का सचित्र विवरण प्रस्तुत कर, संपूर्ण वास्तविकता से अवगत कराने का प्रयास किया है । हमने सीमित साधनों से ही तमिलनाडु में २ वर्षों के भीतर २२-२३ मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराने का सत्प्रयास किया है ।
इस आलेख के माध्यम से मैं भारतवर्ष के समस्त धर्मानुरागियों से आग्रह करूंगा कि इस संस्कृति को और अधिक स्थायित्व प्रदान करने के लिए अधिक से अधिक तीर्थ संरक्षिणी महासभा को अनुदान एवं योगदान प्रदान करें ताकि प्राचीन धरोहर को और अधिक स्थायित्व मिल सके ।
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जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं । हृदय नहीं, वह पत्थर है, जिसको स्वधर्म से प्यार नहीं ।। अगणित जन्मों के पुण्यों से, हमने नर-जन्म कमाया है । पर कितने नादां हैं हम, अब तक तो व्यर्थ गंवाया है ।। संयम, सेवा और निज विवेक से, हम तीर्थों को अपनायेंगे । ये तीर्थंकर हैं मूर्तमान, इनको न हम कभी बिसरायेंगे ।
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- प्रकाशचन्द बड़जात्या, एम. ए.
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