Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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आश्रम के सामने पहाड़ है। सामने धर्मचक्र है। पहाड़ पर चढ़ने की ३०० सीढ़ियाँ हैं । ऊपर जाने पर विशाल मण्डप दिखाई देता है। जिसमें करीब ६०० आदमी बैठ सकते हैं। मण्डप के दक्षिणी ओर कुन्दकुन्द - एलाचार्य महाराज की चरण पादुकायें हैं। (तमिल कुरल काव्य के रचयिता कुन्दकुन्द एलाचार्य माने जाते हैं । उनके प्राकृत के तो समयसार आदि ८४ ग्रन्थ हैं ।) यह एक शिला पर उत्कीर्ण है इस शिला को मणिशिला कहते हैं । पर्वत 'नीलगिरि' के नाम से प्रसिद्ध है । अभी दो वर्ष पूर्व मुनि श्री १०८ आर्जवसागरजी की प्रेरणा से एक और मन्दिर एवं विशाखाचार्य तपोनिलयम् बनाया गया है । यह आचार्य कुन्दकुन्द महाराज की तपोभूमि है । एकान्त स्थान है । निर्जन प्रदेश है । मुनिराजों के अनुकूल स्थान है । इस स्थान को देखने से ऐसा भाव होता है कि हम भी मुनि बनकर इस परम पवित्र स्थान में ध्यान करने लग जायें। सुरक्षित ठंडी-ठंडी हवा आती है। यहाॅ एक गुफा भी है । आसपास में ४-५ मील पर श्रावकों के गाँव हैं । चित्ताकर्षक स्थान होने से मुमुक्षुओं को अवश्य दर्शन करने चाहिए । करीब २० साल पूर्व आचार्य निर्मलसागरजी महाराज का यहाँ चातुर्मास हुआ था । उस समय अच्छी प्रभावना हुई थी । करीब १० साल पूर्व गणिनी १०५ श्री विजयामती माताजी का भी चातुर्मास हुआ था । अपूर्व धर्मभावना हुई थी । त्यागियों के प्रभाव से ही धर्म की प्रभावना होती है किन्तु वर्तमान में उसकी कमी है । भूतकालीन इतिहास इसका साक्षी है । वन्दवासी क्षेत्र का यह पर्वत और जिनालय सर्वाधिक प्रसिद्ध, क्रियाशील और लोकप्रिय है । कुन्दकुन्द स्वामी की यह कर्मभूमि और तपोभूमि के रूप मे प्रसिद्ध है । इस क्षेत्र का प्रायः सर्वतोमुखी विकास हो रहा है । यात्रियों का आवागमन भी प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में होता रहता है ।
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अरुगुलं :- यह स्थान चेन्नई से तिरुत्तनि जाने के रास्ते पर उत्तर में तिरुत्तनि से दस मील की दूरी पर हैं । यहाॅ एक सुन्दर जिनमन्दिर है जो विशाल एवं सुरक्षित है । मूलनायक धर्मनाथ भगवान् है । उसमें परिक्रमा है । सुना जाता है कि पल्लव नरेशों के द्वारा यह मन्दिर बनवाया गया था । मन्दिर बहुत प्राचीन है । पहले जीर्ण था, जीर्णोद्धार करवाकर ठीक कर दिया गया है। यहाॅ जैन लोग नहीं है, सिर्फ पुजारी का घर है, बराबर नित्य का अभिषेक होता है । यह आचार्य अच्चणन्दि महाराज की तपोभूमि है ।
तमिल भाषा का ‘चूड़ामणि' नाम का अद्भुत साहित्य ग्रन्थ है । उसके रचयिता 'तोलामोलिदेव' धर्मनाथ भगवान् के भक्त थे । उन्होंने भगवान् के सन्निधान में ही अपनी ग्रन्थ रचना पारम्भ की थी । इस बात को तमिल का एक पद्य प्रकट करता है। चाहें कुछ भी हो यह तपोधनों का निवास स्थान था । पूर्व में आसपास के गाँवों में भी जैन लोग रहा करते थे किन्तु आजकल सर्वशून्य है । सिर्फ मन्दिर मात्र है । साल में एक बार माघ मास में मेला लगता है । जैन समाज इकट्ठा होता है । उस समय
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