Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 170
________________ वध बंधन और पीड़न जिस प्रकार मुझे अप्रिय हैं, उसी प्रकार वे दूसरे प्राणियों को भी अप्रिय और कष्टकर होंगे। किसी के कठोर और कटु वचन सुनकर या झूठी बातों से मुझे दुःख होता है, वैसे ही दूसरों को भी दुःख होता होगा । मेरी किसी वस्तु की चोरी हो जाने पर, या ठगे जाने पर मुझे जैसी पीड़ा होती है, वैसे ही दूसरे लोग भी वस्तु के वियोग में पीड़ित होते होंगे। मेरे परिवार की स्त्रियों का जरा सा भी तिरस्कार हो जाये तब मुझे जैसा मानसिक कष्ट होता है, वैसा ही अपनी माता-बहिन-पत्नी या पुत्र को लेकर दूसरों को भी होता होगा। परिग्रह-प्राप्ति में बाधा आ जाने पर या प्राप्त परिग्रह के नष्ट हो जाने पर जैसे मुझे वांछा और शोक आदि का दुख उठाना पड़ता है, वैसा ही सभी को होता होगा । बार-बार ऐसा चिन्तवन करने से यह आस्था बनेगी कि हिंसादिक पाप केवल दूसरों के लिए ही दुखद नहीं है, वे मेरे लिए भी वर्तमान में दुःख रूप हैं तथा भविष्य के लिए दुख के बीज हैं । आज बोते समय भले ही क्षणिक सुख का आभास इनमें होता है, परन्तु कालान्तर में जब मुझे वह फसल काटनी पड़ेगी, तब तक यातनाओं, पीड़ाओं और संक्लेशों के चक्रव्यूह में मेरी आत्मा अकेली ही होगी । उस समय मेरा कोई सहायी नहीं होगा। .... नहीं, अब मुझे यह कटीली फसल बोनी ही नहीं है । अपने कुरुक्षेत्र को सुलगने नहीं देना है। पांच ग्राम देकर यह संघर्ष, टलता हो तो यह अवसर खोना नहीं है। क्या सचमुच परिग्रह पाप है..? शास्त्रों में पग-पग पर परिग्रह को पाप बताया गया है । जिसने भी आत्मकल्याण का संकल्प लिया उसने सबसे पहले परिग्रह का ही त्याग किया है । प्रायः सभी धर्मग्रन्थों में परिग्रह की निन्दा की गई है। परन्तु बात कुछ समझ में आती नहीं । सारी सुख-सुविधाएं उपलब्ध कराने की सामर्थ्य रखने वाली सम्पदा पाप कैसे हो सकती है ? कुछ लोग उसे पुण्य का भी तो कहते हैं। पुण्य का फल और पाप यह कैसे हो सकता है ? ऐसे अनेक प्रश्न परिग्रह को लेकर मन में उठते हैं । परिग्रह पाप है तो उसका जहरीलापन समझा जाना चाहिये । उसे सही परिप्रेक्ष्य में पहचाना जाना चाहिये । इसलिए परिग्रह पर कुछ और विचार करेंगे। अपरिग्रह-संरक्षक - एक व्यक्ति मकान बनवाना चाहता था। उसने वास्तकार से अपने मन का नक्शा तैयार करवाया। नक्शा सचमुच बहुत अच्छा बना था । उसके साथ निर्माण के लिए तकनीकी परामर्श ( वर्किंग डिजाइन्स) भी साथ में दी गई थी। इस सब के लिए धन्यवाद देते हुए वास्तुकार से प्रश्न किया गया - कभी-कभी नये मकान में भी पानी टपकने लगता है। आप इतनी कृपा और करें कि इस नक्शे में उन स्थलों पर निशान लगा दें जहां पानी टपकने की हालत में मरम्मत करानी चाहिए। प्रश्न सुनकर वास्तुकार चकित था । अपने व्यावसायिक जीवन में पहली बार ऐसे प्रश्न से उसका 135 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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