Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 171
________________ सामना हुआ था । उसने कहा- बन्धु ! यदि मेरी डिजाइन के अनुसार निर्माण होगा तो मकान में पानी टपकने का कोई प्रश्व ही नहीं है । परन्तु यदि किसी कारण से, कभी, छत टपकने ही लगे तो उस समय कहां मरम्मत करानी होगी, वह आज नक्शे में कैसे रेखांकित किया जा सकता है ? जब पानी टपके तभी आप देख लें कि पानी कहां से टपकता है, बस वहीं मरम्मत करानी होगी । भगवान महावीर ने हमें अपने व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए भी एक ऐसा नक्शा दिया था जिससे एक छिद्र रहित भवन हम बना सकते थे। उन्होंने जीवन निर्माण के लिए कुछ ऐसे तकनीकी परामर्श दिये थे जिन पर यदि अमल किया जाता तो एक निष्पाप और निष्कलंक व्यक्तित्व हमारा बन सकता था । हमारे जीवन में पाप का प्रवेश हो ही नहीं सकता था । परन्तु हम चूक गये । अपने व्यक्तित्व का प्रासाद खड़ा करते समय हमने महावीर के निर्देशों का पालन नहीं किया । इसी का फल है कि हमारे जीवन में पांच पापों का प्रवेश हो रहा है। यदि हमारा जीवन उनकी बताई हुई पद्धति पर गढ़ा जाता तो उसमें पाप के रिसाव का कोई प्रश्न ही नहीं था । अब हमारे सामने समस्या यही है कि अपने सछिद्र व्यक्तित्व को परिपूर्ण बनाने के लिए हम क्या उपचार करें ? हमारे जीवन में जगह जगह पाप का मलिन जल टपक रहा है, किस तरफ से उस चुअन रोकने का प्रयास करें ? पाप प्रवृत्तियों से बचने के लिए महावीर का यही परामर्श है कि निरंतर आत्म-अवलोकन करते रहें । जिस आचरण के माध्यम से हमारे जीवन में पाप प्रवेश होता दिखे, उस आचरण को पूरी सतर्कता के साथ अनुशासित करने का प्रयत्न करें । पाप की जड़- लिप्सा आज हमारे जीवन में परिग्रह ही शेष चार पापों के द्वार खोल रहा है। आज वही कैन्सर की व्याधि बनकर हमारे मन मस्तिक पर छाया हुआ है। जीवन में प्रवेश करती हुई पाप की धारा को रोकने के लिए, हमें पहले अपनी परिग्रह लिप्सा पर अंकुश लगाना होगा, तब उस दिशा में आग बढ़ा जा सकेगा । हिंसा, झूठ, चोरी और कुशील से हम सब घृणा करते हैं, परन्तु परिग्रह से कोई घृणा नहीं करता । उल्टे उसके सान्निध्य में हम अपने आप को सुखी और भाग्यवान समझने लगे हैं। यह परिग्रह-प्रियता हमें भीतर तक जकड़ रहीं हैं, यह हित-अहित का विवेक भी हमसे छीन रही है । आज परिग्रह के पीछे मनुष्य ऐसा दीवाना हो रहा है कि उसके अर्जन और संरक्षण के लिए वह करणीय और अकरणीय, सब कुछ करने को तैयार है । हम अनजाने में भी हिंसक नहीं होना चाहते, परन्तु परिग्रह के अर्जन और रक्षण के लिए जितनी भी हिंसा करनी पड़े हम करते जा रहे हैं। हम स्वप्न में भी झूठ और चोरी कमें अपनी प्रतिष्ठा नहीं मानते । 136 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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