Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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किया । जैन धर्म का ह्रास देखकर जैन लोगों ने भी दिल्ली, कोल्हापुर, जिनकांची, पेनुगोडा आदि स्थानों में मठ की स्थापना कर जैन संस्कृति की रक्षा की थी । वर्तमान में दक्षिण में भट्टारक प्रथा होने से जैन संस्कृति अक्षुण्ण बनी हुई है । तामिल प्रान्त में आज भी यह प्रथा है कि जैनियों के लड़के-लड़कियों को पहले-पहल भट्टारकों से ही पंच नमस्कार दिया जाता है। लड़कों को पंच नमस्कार मंत्र का उपदेश देते समय जनेऊ पहनाया जाता है । तामिलनाडु में इस समय तिरुमलै के भट्टारक श्री धवलकीर्तिजी स्वामीजी की देखरेख में पूराने क्षेत्रों की खोज हुई है। भट्टारक स्वामीजी ने न केवल जीर्णोद्धार के कार्य में पूर्णरूप से जुटे हुए हैं अपितु यहाॅ की हजारों वर्षों की परंपरा को भी पूर्ण गौरव के साथ बनाये रखने में भी प्रयत्नशील है ।
वर्तमान में यहाँ के मन्दिरों का जीर्णोद्धार के लिए भारतवर्षीय दिगम्बर जैन (धर्म-तीर्थ) महासभा ने काफी कार्य किया है । करीब २५ लाख रुपये विभिन्न मन्दिरों के जीर्णोद्धार के लिए लगे हैं। करीब १५ साल पहले १०८ आचार्य श्री निर्मलसागरजी महाराज ने तामिलनाडु में ६ साल विचरण करके अत्यन्त धर्म प्रभावना की । बाद में १०५ आर्यिका श्री विजयमति माताजी ने ५ साल भ्रमण करके विभिन्न विधान पूजाओं से अवगत कराया और उनका महात्म्य बताया। कई मन्दिरों की प्रतिष्ठा भी कराई । १०५ आर्यिका सुप्रकाशमति माताजी ने भी ४ साल भ्रमण करके धर्म प्रभावना की । वर्तमान १०८ गुरु श्री आर्जवसागरजी महाराज पिछले ४ सालों से विहार कर रहे हैं । पूज्य महाराज ने अनेक प्रतिष्ठायें करायी। सैंकड़ों लोगों को पूजा-पाठ, ब्रह्मचर्य एवं अनेक नियम दिलाये । पहले पूजा-पाठ पूजारी से करवाते थे, अब श्रावक स्वयं करने लगे हैं। उनके यहाॅ रहने से काफी धर्म प्रभावना हो रही है ।
तमिलनाडु के जिनालय जितने विशाल है उतने ही अनुपम कला से शोभित है। मूर्तियों की सौम्य एवं विशाल छवि अनुपम, अद्वितीय है । उनको सुरक्षित रखना प्रत्येक जैनी का परम कर्तव्य है । हमारी संस्कृति के आधार ये जिनालय है जो हजारों वर्षों से हमारे आचार, विचार, त्याग, तपस्या एवं आत्म-शोधन के साध् ानों का संरक्षण करते आ रहे हैं। प्राचीन संस्कृति के स्मारक इन जीर्ण भवनों का संरक्षण, जीर्णोद्धार करना हम सब का अनिवार्य कर्तव्य हो जाता है। हम सबको एकजुट होकर तन-मन-धन से इस कार्य में लगना होगा, नहीं तो यह हमारे अन्धेर खाता होगा । अपने ही हाथों अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा । आशा है हम सब उनकी रक्षार्थ अपने को समर्पित करने का प्रण लें, नहीं तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं
करेगी ।
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जैन धर्म की जय ।
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