Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मन्दिर के लिये एक राजा ने 'आरान्द मंगलम्' नाम का गाँव, बगीचा और कुआ आदि दान में दिया था । इसका निर्वाह वज्रसिंह साधु और उसके शिष्य करते रहे। इस तरह का शिलाशासन किया गया था । पाँचों पांडवों का यहाँ आगमन हुआ तथा यह अनेक मुनियों की तपोभूमि भी रही है ।
मेल उलक्कूर के पास एक तोण्डर है। यहाॅ एक विशाल जिनमन्दिर है । मूलनायक महावीर भगवान् है । मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ है। मन्दिर में धातु की मूर्तियाँ भी है। यह जिन-मन्दिर प्राचीन है । गाँव से एक फर्लांग पर छोटी पहाड़ी है । उसमें एक गुफा है। गुफा की चट्टान पर पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति उत्कीर्ण है । यह अत्यन्त चमत्कारी मानी जाती है। अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिए जैन-अजैन सभी आते हैं और भक्ति से पूजा करते हैं। कहा जाता है कि अनेकों आचार्यों ने यहाॅ तपश्चरण किया था । गुफा के ऊपर अनेकों शय्याये हैं, जिससे पता चलता है कि कई मुनिराजों ने यॉतप किया होगा और आत्म-साधना के द्वारा निजानन्द प्राप्त किया होगा । यहाँ अत्यन्त शान्त वातावरण है । यहाँ श्रावकों के २५ घर है जो धर्म प्रेमी और धार्मिक प्रवृत्ति के है । महासभा से अनुदान दिया गया है ।
कल्लपुलियूर :- यह जिंजी से १५ कि. मी. पर है । यहाँ दिगम्बर जैनों के ५० घर है । एक जिन मंदिर है । मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथ है । मन्दिर की व्यवस्था ठीक है । यह साधु-सन्तों का जन्म-स्थान रहा है । श्री १०८ वर्धमानसागरजी का जन्म स्थान यही हैं । यहाँ का मन्दिर प्राचीन है । मन्दिर में धातु की मूर्तियाँ बहुत है। यहाँ के भण्डार में ताड़पत्र के करीब १५० ग्रंथ है। श्रावक-श्राविकाओं में धर्म की ओर अभिरुचि है। पूजा-पाठ आदि बराबर चलता है ।
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