Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 155
________________ ब्रह्मचर्य/स्पप्नदोष-निवृति/राजसम्मान/लक्ष्मी वृद्धि/प्रतिष्ठा प्राप्ति जादू-भूत-प्रेत प्रभाव निवारक/रोजगार दायक/भाग्यहीन भी भूखा न रहे स्वजन परजन प्रेम प्रदायक ४५. सर्वभय उपसर्ग विनाशक/सर्वरोग शन्ति/तेज प्रताप विस्तारक राजभय निवारक/ कारागार मुक्ति पं.हँसमुख जैन प्रतिष्ठाचार्य धरियाबाद ने अपने लेख 'मन्त्र-परिचय एवं मन्त्र विधि' में कालशुद्धि के अन्तर्गत जाप प्रारंभ करने का काल बतलाया है, जो निम्न प्रकार है - (१) वैशाख, श्रावण, आश्विन, कार्तिक, अगहन, माघ और फाल्गुन मास मन्त्रारंभ के लिये श्रेष्ठ हैं। (२) कृष्ण पक्ष में २, ३, ५, ७, १०, १३ और १५ तिथियाँ अच्छी हैं । (३) रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार ठीक हैं । (४) अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, मघा, पूर्वात्रय, उत्तरात्रय, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, शतभिखा और रेवती नक्षत्र उत्तम हैं। (५) रविपुष्य, गुरुपुष्य, रवियोग, सिद्धियोग, सर्वासिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग इष्ट हैं । (६) रात्रि का तीसरा और चौथा प्रहर अच्छा है। (७) वृष, मिथुन, सिंह, कन्या, वृश्चिक, धनु, कुंभ और मीन लग्न उत्तम है । भक्तामर-पद्यसंख्या : दिगम्बर मान्यातानुसार भक्तामर स्तोत्र में ४८ काव्य हैं । मुनिश्री रत्नसिंह कृत 'प्राणप्रिय' खण्डकाव्य में इसके ४८ काव्यों के अन्तिम चरणों की समस्यापूर्ति का उपलब्ध होना तथा 'भक्तामर शतद्वयी' में ४८ काव्यों के प्रत्येक चरण की समस्यापूर्ति का मिलना इसी संख्या को पुष्ट करता है। स्थानकवासी श्वेताम्बराचार्य कविरत्न श्री अमरमुनि आदि ने भक्तामर के पद्यों की संख्या ४८ ही मानी है। श्वे. साध्वी महासती उम्मेदकँवरजी ने भी 'स्वाध्याय सुमन' में ४८ काव्यों को सार्थ दिया है। दुन्दुभि, पुष्पवर्षा, भामंडल और दिव्यध्वनि प्रातिहार्यों का उल्लेख करने वाले ३२ से ३५ काव्यों को छोड़ भक्तामर का यथावत् पाठ श्वेताम्बर संप्रदाय में प्रचलित है। निर्णयसागर प्रेस से मुद्रित सप्तम गुच्छक संपादक महोदय के मतानुसार इन ४ काव्यों की भाषा शैली मूल से मेल नहीं खाती अतः ये आचार्य मानतुंगकृत नहीं हैं । अस्तु । इस पर मीमांसा न करके प्रकृत विषय पर विचार किया जाता है। कल्याण मंदिर स्तोत्र भी भक्तामर की भाँति दिगम्बर व श्वेताम्बर दोनों ही संप्रदायों में मान्य है। इसके १६ २६ वे पद्यों मे अष्ट प्रातिहार्यों का वर्णन आता है। श्वेताम्बर वाड्मय में कहीं भी तीर्थकर के चार प्रातिहार्य उल्लिखित नहीं मिलते, सभी ग्रन्थ एक स्वर से अष्ट प्रातिहार्य के स्वीकार करते हैं। जब वस्तु स्थिति ऐसी है, तब भक्तामर जैसे गरिमापूर्ण स्तोत्र में चार प्रातिहार्यों के प्रतिपादक काव्यों को परिगणित न करना अवश्य ही 120 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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