Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 163
________________ गर्भ से महान् होता है । त्रिलोक्याधिपति तीर्थंकर भगवान मध्यलोक में जन्म लेने वाले है, इन्द्र अवधिज्ञान के द्वारा जब ऐसा जानता है तब वह कुबेर को आज्ञा करता है कि तुम मध्यलोक में जाकर सुन्दर, उत्तम नगरी की रचना करो । श्री ही आदि अष्ट देवियों को भी इन्द्र आज्ञा देता है कि तुम लोग तीर्थंकर जननी की सेवा करो । इन्द्र की आज्ञा पाकर कुबेर नव योजन चौड़े और बारह योजन लम्बे सुंदर विशाल नगर की रचना करता है । कुबेर भक्ति के साथ गर्भ में आने के छह माह पूर्व ही दिन मे चौदह करोड़ रत्नों की वर्षा भी प्रारम्भ कर देता है । श्री ही धृति आदि आठ मुख्य देवियों के साथ छप्पन कुमारिका देवियां भी माता की सेवा करती है। जिनमाता पिछली रात्रि में १६ स्वप्नों गजराज, श्वेत वृषभ, सिंह, लक्ष्मी का कलश के द्वारा अभिषेक, दो माला, रवि, शशि, दो मीन, कनक घट, जलयुक्त सरोवर, कल्लोल मालाओं से युक्त समुद्र, सिंहासन, रमणीक देव विमान, धरणेन्द्र भवन, रूचिकर रत्नराशि और निर्धूम अग्नि को देखती है । प्रातःकाल शुभबेला में उठकर नित्य क्रिया से निर्वृत्त हो राजा के पास जाकर वह जिनमाता पतिदेव को विनयपूर्वक नमस्कार करके स्वप्नों का फल पूछती हैं। राजा स्वप्नों का फल कहकर रानी को संतुष्ट करते हैं तथा कहते हैं - प्रिये तुम्हारी कोख से तीनलोक का नाथ ऐसा तीर्थंकर पुत्र उत्पन्न होगा। भगवान तीर्थंकर को गर्भ में आया जानकर इन्द्र मध्यलोक में आता है और नगर की तीन प्रदक्षिणा देकर माता-पिता को नमस्कार करके उनकी फल पुष्पों से पूजा करता है। तथा उसी समय साढ़े बारह करोड़ वादित्र बजने लगते है । देवांगनाएं माता से अनेक प्रकार के गूढ़ प्रश्न पूछती है तथा माता भी गर्भस्थ महानात्मा से ज्ञान के प्रभाव से गूढ़ प्रश्नों का उत्तर देती है । बालक तीर्थंकर जनम से भी नहीं गर्भ से ही महान् होते है उसी महानता का फल माता पर भी पड़ता है। माता की सेवा देवियां करती है। कोई माता को नहलाती है, कोई श्रृंगार करती है, कोई दर्पण दिखलाती है। यदि स्वीकार न करें तो क्या अन्य नारी में यह में विशेषता देखने में आती है । इस प्रकार अनेक प्रकार से देव-देवांगनाएं गर्भालय मनाती है, उनको गर्भ कल्याण कहते हैं । मति-श्रुत-अवधि तीन ज्ञान के अवधारक तीर्थंकर भगवान् का जिस समय जन्म होता है उस समय तीन लोक में आनन्द और शान्ति छा जाती है उसका वर्णन अवर्णीय है। देवियां माता की सेवा करने में तत्पर रहती है । पुत्र जन्म के समय माता को थोड़ा सा भी कष्ट नहीं होता। उस समय नाभिमंडल अत्यंत स्वच्छ हो । आकाश से कल्पवृक्ष के सुगन्धित पुष्पों की वर्षा होती है । दुंदुभि बाजे बजते है । प्रकृति भी उस समय मानों हर्ष से नाच उठती है । जाता है Jain Education International 128 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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