Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha

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Page 159
________________ पूज्यपाद स्वामी संसार का कारण बताते हुये लिखते हैं : मोहन संवृत्त ज्ञानं स्वभाव लभते नहीं । मत पुमान्पिदार्शलां, यथा मदन क्रोद्रर्वेः।। यह जीव मोह रूपी मदिरा पी के अपने स्वरूप भूल चुका है, जैसे मदिरा पान किया हुआ व्यक्ति कभी स्त्री को माता कहता है, और माता को स्त्री। वह शराबी यथार्थ वस्तु स्वरूप को समझ नहीं पाता । उसी प्रकार मोह रूपी शराब पीया हुआ प्राणी अपने स्वरूप को जान नहीं पाता । पं. दौलतरामजी ने भी इसी बात का उल्लेख इस प्रकार किया है : ताहि सुनो भवि मन थिर आन जो चाहो अपनों कल्याण। मोह महामद पियो अनादि, भूल आपको भरमत वादी ।।३।। हे भव्य जीवों ! यदि तुम अपना कल्याण चाहते हो तो इस परम, पवित्र, दुःख निवारक और सुखदायक शिक्षा को मन स्थिर करके सूनो । यह जीव अनादि काल से मोह रूपी मदिरा पान कर अपने आत्मा को भूल कर मोहरूपी मदिरा से उन्मत होकर इधर-उधर चारों गति में परिभ्रमण कर रहा है। इसी प्रसंग में मुझे एक दृष्टान्त याद आ रहा है- एक व्यक्ति अपनी पत्नी से बहुत डरता था । वह मदिरा-पान करके पत्नी के समक्ष नहीं जाता था। एक दिन घटना यह घटी, जब वह मदिरा सेवन करके अपने घर में प्रवेश करने जा ही रहा था कि अचानक दरवाजे के सामने पत्नी खड़ी दिखलाई दी। यह देखकर उसके पांव तले से धरती खिसकने लगी। उसे आभास हो गया कि अब तो पत्नि को पता चल जायेगा कि मैं शराब पीया हूँ। शराबी ने सोचा कि पत्नी नाराज होगी अतः उसे प्रसन्न करने का प्रयत्न करना चाहिये। वह मदिरा के मद में चर था. दरवाजे के सामने भैंस बंधी हई थी. शराबी ने भैंस की पंछ पकडी और कहने लगा- हे प्रिये ! हमेशा तम दो करती हो, आज एक ही चोटी क्यों की है ? जिस प्रकार यह शराबी मदिरा से उन्मत होकर भैंस को पत्नी मान बैठा उसी प्रकार मोहरूपी मदिरा से उन्मत प्राणी स्वरूप न जानकर पर पदार्थ में अहं बुद्धि रखता है, तथा पर आत्मा, शरीरादि को अपना मानता है। इसी कारण चौरासी लाख योनि में भ्रमण कर रहा है। और इन योनियों में दुःख ही होगा, दुःख के सिवाय अन्य कुछ नहीं हो सकता है। जिस प्रकार विष जब भी और किसी को भी पिलाया जाय वह मारने के सिवाय अन्य कार्य नहीं कर सकता है, उसी प्रकार मोह भी किसी के भी प्रति क्यों न हो वह दुःख का ही कारण होता है । मोह में विद्याध्ययन भी नहीं होता क्योंकि मोहित विद्याभ्यास नहीं करने देता । इसी कारण से पूर्व काल में (रामनवमी के समय से ) बच्चों को घर में नहीं पढ़ाया जाता था । १२ वर्ष तक गुरुकुल में विद्या अध्ययन कराया जाता था, इसका कारण यह है कि घर में बच्चा रहेगा तो बच्चा का मोह परिवार के प्रति बढ़ेगा तथा पारिवारिक जनों का भी स्वभावतः बच्चे के प्रति मोह बढ़ेगा । लाड़-प्यार मे पढ़ नहीं सकता है। बल्कि उदण्ड टेयाँ 124 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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