Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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भक्तामर वाङ्मय :
भक्तामर पर आधारित लगभग २०-२५ समस्या पूर्तियाँ रची गई हैं। उदाहरणार्थ देखिये
प्राणप्रियं नृपसुता किल रैवताद्रि श्रृङ्गग्रसंस्थितमवोचदिति प्रगल्भम्। अस्मादृशामुदितनीलवियोगरूपेऽ वालम्बनं भवजले पततां जनानम् ।।१।।
[प्राणप्रिय खण्डकाव्य - मुनि रत्नसिंह ]
ऐसे कुल अड़तालीस छन्द इस काव्य में हैं, जिनमें भक्तामर के सभी चतुर्थ चरण समाविष्ट हैं तथा वर्णन भगवान नेमिनाथ का किया है । प्रत्येक चरण की समस्यापूर्ति भक्तामर शतद्वयी में की गई है । वीर भक्तामर, नेमीभक्तामर, सरस्वती भक्तामर, शांति भक्तामर, पार्श्व भक्तामर, ऋषभ भक्तामर आदि अन्य समस्या पूर्तियाँ हैं । स्तोत्र की कतिपय संस्कृत टीकाएँ हैं। हिन्दी, अंग्रेजी, जर्मन आदि विविध भाषाओं में स्तोत्र के कई गद्यानुवाद एवं पद्यानुवाद हुए हैं। ऋद्धि, मन्त्र, यन्त्र व इनकी साधना विधि (तन्त्र) भी प्रत्येक काव्य के साथ किन्हीं प्रकाशनों में मिलती है । तत्संबंधी महिमा का उल्लेख भक्तामर कथालोक में कथाओं द्वारा किया गया है । संस्कृत भक्तामर कथा के रचनाकार भट्टारक हैं । (वि.१८ वीं शती के) विश्वभूषण भट्टारक और पं. विनोदीलाल ने भक्तामर चरित को रचा। एक भक्तामर महामण्डल पूजा भी है जिसके रचनाकार सोमसेनाचार्य हैं । आज इस स्तोत्र के अनेक संगीतमय कैसट एवं व्रत पूजन विधान भी प्रचलन में हैं ।
स्तोत्र का हृदय :
सर्वप्रथम आचार्य महाराज ने मंगलाचरण पूर्वक अपनी भावना व्यक्त की है, वे कहते हैं । पद्य क्र. १.२. ‘मैं सर्वज्ञ, वीतराग व हितोपदेशी भगवान आदिनाथ जी के चरण युगल को प्रणाम करके उनकी स्तुति करूंगा, जो सकल शास्त्रों के मर्मज्ञ, बुद्धिसंपन्न एवं कुशल इन्द्रों द्वारा उत्कृष्ट व मधुर स्तुतियों से वन्दित थे ।'
हुए
पश्चात् भगवान को लक्ष्य करके अपनी चेष्टा को अविचारित बताते हैं ।
३.४ 'हे प्रभो ! इन्द्र जैसी बुद्धि के अभाव में आपकी स्तुति करने को उत्कंठित होना मेरा लड़कपन है। बालक ही पानी में पड़ी चन्द्रमा की परछाई पर झपटता है। हे गुणों के सागार ! आपके चन्द्रमा सम रूचिकर गुणों को कहने में कौन सक्षम है ? भले ही वह इन्द्र के गुरू बृहस्पति जैसा बुद्धिमान भी क्यों न हो । कुपित जल जन्तुओं से परिपूर्ण प्रलयकलीन समुद्र को हाथों से कौन पार कर सकता है ?
आगे वे कहते हैं कि मैनें यह असंभव कार्य करने का विचार क्यों किया है ?
५.६ 'हे मुनीश ! असमर्थ होकर भी आपकी भक्ति के प्रभाव से मैं स्तुति करने को तैयार हुआ हूँ जैसे
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