Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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(६) रेफ बोलते समय आवाज अटकनी चाहिये । जैसे 'दुन्दुभि र्ध्वनति' यहाँ दुन्दभिर् पर अटककर 'ध्वनति' बोलें । ज्यादा अटकने से तालभग होगा। रेफ को पूरे 'र' जैसा न उच्चारित करें। आगामी अक्षर के उच्चारण स्थान से अनुस्वार का उच्चारण करें ।
(७) सरकारी 'स' को शक्कर वाला 'श' न बोलें । 'श' ओर षट्कोण के 'ष' को 'स' न बोले । इसी तरह 'द्य' को 'ध्याध' न बोलें । 'क्ष' को 'छ' या 'ज्ञ' को 'ग्य' भी न बोलें ।
(८) 'फ' का उच्चारण उपरिल दाँत और निचला होठ मिला कर न करें, दोनों ओठ मिलाकर करें । 'ङ' को 'ड' न कहें, न ही 'अंग' बोलें किन्तु जंगल और तीर्थंकर के अनुस्वार बिन्दु जैस उच्चारित करें । विसर्ग ':' की ध्वनि आधे "ह" जैसी हो जैसे दीवार से टकराकर आयी हो ।
(६) “वहि” को “वन्हि” यह वहनि न कहकर वःनि कहें ।
१०) प्रवृत्तः को प्रवर्तः या 'प्रव्रतः' न बोलें अपितु प्रव्रित्तः कहें। मृगेन्द्र को 'भ्रगेन्द्र' न कहें । गाढं को गाढ़ न बोले और निगड को निगड़ न बोलें संस्कृत भाषा में कु, ग, फ, ज़, ड़ या ढ़ नहीं होते ।
नियम :
यदि स्तोत्र पाठ का एक-वर्षीय नियम लेना हो, तो निम्नलिखित बातों को ध्यान दें।
(१) पाठ दोपहर के पूर्व कर लें, सूर्योदय की बेला उत्तम है। बैठक पूर्वभिमुख या उत्तराभिमुख रखें ।
(२) श्रावण, भाद्रपद, कार्तिक, मगसिर (अगहन), पौष और माघमास की पूर्णा (५,१०,१५), नन्दा
(१,६,११), तथा जया (३,८,१३) तिथियाँ नियमारंभ की तिथियाँ हैं। पक्ष शुक्ल हो ।
(३) प्रारंभिक दिन ब्रह्मचर्य पालें और उपवास या एकशन (एक बार आहार जल) का संकल्प निभायें । (४) एक वर्ष तक अभक्ष्य और व्यसनों से पूर्णतः बचें ।
(५) ऋतुकाल में उच्चारण वर्जित है । सूतक आदि का भी विवेक रखें ।
नित्यपाठ शुरू करने के इच्छुकजन निम्नांकित बातों पर ध्यान दें :
(१) चैत्र, जेठ एवं आषाढ़ माह से नित्यपाठ शुरू न करें ।
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(२) शेष महीनों के शुक्ल पक्ष की १, ३, ५, ६, ८, १०, ११, १३ और १५ तिथियाँ मान्य हैं I (३) मन्दिर में भगवान के सम्मुख पाठ करना अच्छा है या फिर दोपहर से पूर्व किया जा सकता है। (४) विनय और शुद्धि का सामान्य विवेक आवश्यक है। मन, वचन और काया की स्थिरता अपेक्षित है ।
भक्तामर की मन्त्र शक्ति :
भक्तामर स्तोत्र केवल स्तोत्र ही नहीं, अपितु विचित्र तथ्य इस स्तोत्र के विषय में उजागर किया
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मन्त्र शक्ति का खजाना भी है। सहजानन्द वर्णी जी ने एक “इसके प्रत्येक काव्य में वर्णमाला के चार व्यंजन 'म, न, त
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