Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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होगा । इस गुफा में पूराने जमाने में श्रमण साधुगण अपनी आत्माराधना (तप) किया करते थे। यहाँ पर ब्रह्मीलिपि में शिलालेख है । यह शिलालेख कई तीर्थंकर भगवानों के तामिल नाम बतलाता है। साधुओं के भी दूसरा शासन बतलाता है कि अवनिशेखन श्रीवल्लुवन के जमाने में इलंगोतमन नाम के बुद्धिमान व्यक्ति ने उक्त भीतर के मण्डप का जीर्णोद्धार किया था । _यहाँ के बगीचे में एक टूटी हुई जिनमूर्ति है । उस पर हल्का सा ठोकने पर मधुर नाद निकलता है । कई शिलालेख ये बतलाते हैं कि जैन मन्दिरों के लिए किसी व्यक्ति ने पल्लिचंदं के नाम जमीन दान में दी थी।
कुलत्तूरतालू का कुन्नाण्डार (कोयिल-मन्दिर) गुफा मन्दिर, जैन मन्दिर है। यहाँ के नारियल के बगीचे में दो जिन प्रतिमायें हैं । समणरमेडु में जमीन से मूर्ति मिली है । तेक्काटूर में एक जैन मूर्ति है। कइण्गुडि में एक जैन मूर्ति मिली है। कीलैतानियम गाँव में कुछ जैन मूर्तियां हैं। इन सबको देखने से पता चलता है कि प्राचीन काल में यहाँ और आसपास में बहुत अधिक जैन लोग रहते थे । कलह के समय सब नष्ट कर दिया गया है। नहीं तो इतनी मूर्तियाँ और श्रमणों के चिह्न नहीं मिल सकते थे। इसे पंचमकाल का दोष ही कहना चाहिए । धर्म की अवनति और अधर्म की उन्नति हुई है।
तंजाऊर जिला तंजाऊर ( सिटी,करदट्टाडी ) :- यह जिला है । यहाँ आदिनाथ भगवान् का जिनालय है । यह २५०० वर्ष प्राचीन है । यहाँ अनेकों धातु की प्रतिमायें हैं । शासन देवताओं की मूर्तियां हैं। प्रदक्षिणा में सरस्वती देवी मन्दिर हैं । ब्रह्मदेव, ज्वालामालिनी और कुष्माण्डिनी के भी मन्दिर है। मन्दिर की व्यवस्था साधारण है। दो-तीन साल के पहले प्रतिष्ठा भी हुई थी। यहाँ श्रावकों के २० घर है। जिन भक्ति अच्छी है।
तंजावूर (कोटै) यहाँ जैनियों के १५ परिवार है । एक चैत्यालय है । कई धातु की प्रतिमायें हैं । शासन देवतओं की मूर्तियाँ हैं । यह व्यक्तिगत चैत्यालय है । तंजाऊर करन्दै से तीन कि.मी. दूर है। यह शहर के भीतर है।
तिरुवारूर:- यह शहर है। प्राचीन काल में यहाँ जैन लोग समृद्धि के साथ रहते थे। उस समय यहाँ का तालाब छोटा था । उस तालाब के चारों ओर जैन लोगों के मठ पाठशाला और जमीन आदि थे। ई.सातवीं सदी के पहले यहाँ सांप्रदायिक उपद्रव हुए और जैन लोगों को यहाँ से भगा दिया गया था। शैव पेरियपुराण बतलाता है कि 'दण्डि अडि' के जमाने में इस तरह का कलह हुआ था।
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