Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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इसमें जम्बै विजयनायनार के द्वारा दिया हुआ मन्दिर (जैन) के दान का विवरण है । इसके अलावा 'वालैयूरनाट्टु पेरुंपल्लि' नाम के जैन मन्दिर के सहायतार्थ एक झील दान में दी गई है । इससे दो कि.मी. पर राजराजचोल का शासन कण्डरादित्य पेरुपल्लि नाम के जैन मन्दिर का विवरण बताता है । यह भी बतलाता है कि यहाॅ एक 'अंजिनान पुगलिडं' भयभीतों का रक्षा स्थान था । यहाॅ कोई भय से आवे तो उसकी रक्षा की जाती थी ।
सोलवण्डिपुरं :- (तिरुक्कोविलूर तालूका) यहाँ के कीरनूर गॉव में 'किरनांपाटै' नामकी एक चट्टान है । उस पर भगवान् गोमटेश्वर और पार्श्वनाथ की मूर्तियाँ और साधु लोगों की शय्यायें हैं । यहाँ पर एक जमाने में जैन लोग अत्यन्त वैभव के साथ निवास करते थे । दूसरी बात यह है कि सोलवाण्डिपुरं के आण्डि पहाड़ पर दसवीं सदी का शासन मिलता है। यहाॅ की चट्टान में शासनदेवी पद्मावती माता, गोमटेश्वर भगवान्, पार्श्वनाथ भगवान् और महावीर स्वामी की मूर्तियां है । शासन देवी पद्मावती माता, इसके पास देवियगरं एलन्दूर में पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति है । इससे पता चलता है कि साऊथ आर्काड जिले के अन्दर जैन लोग एक जमाने में अधिक संख्या में रहते थे और उनके जैन मन्दिर भी थे । इस सभी जगह पर जैन मन्दिरों की जमीनें थी । जीर्णोद्धार की आवश्यकता है ।
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तिरुच्चिरापल्लि जिला
उरैयूर :- यह चोल राज्य का प्रधान शहर था । यहाॅ जैन लोग और जैन मन्दिर थे । 'सिलप्पधिकारं' नामक जैन काव्य के पात्र कोवलन - कण्णकी के साथ जैन आर्यिका 'गौडंनदी अडिगल' माताजी ने यहाॅ के जिन भगवान् की वन्दना की थी। फिर मथुरा (दक्षिण) नगरी की ओर तीनों प्रस्थान किये थे । यह बात सिलप्पधिकारं मथुरा काण्ड में उल्लिखित है । ई. दूसरी सदी में यहाॅ जैन लोग अधिक संख्या में निवास करते थे। यह बात नीलकेशी ग्रन्थ आजीवकवाद सर्ग में बतलाई गई है ।
कुत्तालं :- तेन्कासि तालूका कुत्तालं की गुफा और पहाड़ी में श्रमण मुनिगण रहा करते थे । तिरुमलैवाडी :- यहाॅ कुन्दवै देवी ने एक जैन मन्दिर बनवाया था । अभी नहीं है । पुदुकोटै जिला
सिद्धनवासलषे :- पुदुकोटै तमिलनाडु का अत्यन्त प्राचीन धार्मिक-सांस्कृतिक नगर । अब यह एक बड़ा गाँव जैसा है। यहाॅ के सरकारी म्यूजियम में अनेक तीर्थंकरों की प्रतिमाएं, देवी-देवताओं के बिम्ब, शिलालेख, फोटो आदि संग्रहीत है । यह सामग्री २००० वर्ष
है
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