Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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में पेल दिया था । अब भी यहाँ के वार्षिकोत्सव में जैन साधुओं के पुतले जलाये जाते हैं । (संभवतः अब सरकारी प्रतिबन्ध के कारण यह प्रथा बन्द है।) अब कुछ पर्वतों पर ही जैनत्व के अवशिष्ट चिन्ह विद्यमान है । मदुरै के आसपास जो पहाड़ और चट्टान है उनमें ब्राह्मीलिपि में लिखा हुआ एक शासन ई.पूर्व दो शताब्दी का मिलता है। शैव पेरियपुराणं के आधार से पाण्डिय देश में जैन धर्म शोभायमान था । कून पाण्डियन नेडुमारन जैन धर्मानुयायी था । उस समय 'ज्ञानसंबन्धन' ने राजा को रानी के द्वारा शैव बना लिया था। जिसके कारण से हजारों जैन साधु शूली पर चढ़ा दिये गये थे अथवा मार दिये गये थे। ज्ञानसंबन्धन के समय में ही जैन धर्म का हास हुआ , परन्तु सर्वथा नष्ट नहीं हुआ। यहाँ आसपास के पहाड़ों पर जैन साधु तप करते थे। वे आठ पहाड़ हैं । इन पहाड़ पर आठ हजार मुनि लोग रहते थे। उन सब को शूली पर चढाकर मार दिया था। इस बात को शैवपुराणं स्वयं बतलाता है , जैसे- 'एण्णेरुकुन्द्रत्तु एण्णायिरवलं एट्र एरिनारकल' इसका तात्पर्य यह है कि आठ पहाड़ों के आठ हजार मुनि लोग शूली पर चढाये गये । अब इन पहाड़ों के बारे में विचार करेंगे।
यानैमलै :- तामिल भाषा में पहाड़ को मलै कहते हैं । यानै को हाथी, 'यानैमलै' अर्थात् हाथी-पहाड़ । यह मदुरै के पास ६ कि.मी. पर है। यह जैन साधुओं के आठ पहाड़ों में से एक है। इस पहाड़ में गुफा और ब्राह्मीलिपि का शासन है। लिपि अनुसंधान वालों का कहना है कि यह दो हजार साल के पहले का है। इस गुफा में श्रमण साधुगण रहते थे। बाद में जैन मुनिराजों को भगाकर यहाँ एक वैष्णव मन्दिर बनवा दिया गया है। अब भी वह वैष्णव मन्दिर मौजूद है। इस मन्दिर के शासन से पता चलता है कि यह मन्दिर ई. ७७० में बनवाया गया है। एक शासन संस्कृत में है। दूसरा पूरानी तमिल भाषा में है।
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