Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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लक्ष्मीसेन भट्टारक है । चार मठ मुख्य माने जाते हैं , जैसे- दिल्ली, कोल्हापुर, जिनकुन्जी और पेनकोण्डा, किन्तु पेनकोण्डा का पता नहीं चलता । सम्भवतः वह कर्नाटक में था ।
मठ के पास दो मन्दिर है । एक नेमिनाथ भगवान् का एवं दूसरा पार्श्वनाथ भगवान् का है । पार्श्वनाथ भगवान् का मन्दिर नया और कलात्मक है । मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान् की मूर्ति देखते ही बनती है । इतनी कलापूर्ण सुन्दर आकृति है कि उसका वर्णन करना अशक्य है । नेमिनाथ भगवान् की मूर्ति भी पूरानी है तथा कला की दृष्टि से उत्तम है । प्रवेश गोपुराकार सात मन्जिल का है । मन्दिर के सामने विशाल मैदान है। चैत्र माह में दस दिन का ब्रह्मोत्सव हर साल होता है। सातवें दिन भगवान् पार्श्वनाथ का रथोत्सव होता है । यह सब दक्षिण परंम्परा के अनुसार चलता है।
पार्श्वनाथ भगवान् का मन्दिर बड़ा मन्दिर कहलाता है । मन्दिर ग्रेनाइट पत्थर से बनवाया गया है । दक्षिण की वास्तुकला से परिपूर्ण है । नेमिनाथ भगवान् का मन्दिर छोटा मन्दिर कहलाता है । बड़े-छोटे मन्दिरों में धातु की मूर्तियाँ बहुत है। छोटे मन्दिर के पश्चिम में सरस्वती, गणधर परमेष्ठी, ब्रह्मयक्ष, कुष्मांडिनी देवी, ज्वालामालिनी यक्षी और पद्मावती- इन सब के अलग-अलग मन्दिर है। यहाँ एक बहुत बड़ा सभा मण्डप है। उसके सामने मानस्तम्भ और ध्वजस्तम्भ है । उसके सामने के मण्डप में बाहुबली भगवान् की मूर्ति विराजमान है ।
मठ के अन्दर ताड़पत्र का शास्त्र भण्डार है । देखरेख की कमी के कारण ग्रन्थ जीर्ण-शीर्ण होते जा रहे हैं । मठ की काफी जमीन है । चार-पांच साल से वर्षा का अभाव होने के कारण आमदनी नहीं के बराबर है । मन्दिर के दोनों गोपुरों का जीर्णोद्धार हो गया है । पाण्डुक शिला भी है। ब्रह्मोत्सव के अन्तिम दिन १००८ कलशों से इसी पाण्डुक-शिला पर भगवान् का अभिषेक होता है । मठ के अन्दर प्राचीन चॉदी, स्फटिक, हीरा, पन्ना आदि की मूर्तियाँ हैं । धर्मशाला है । यात्री लोग ठहर सकते हैं । आने-जाने के लिये बस की सुविधा है। यह दर्शन करने योग्य अतिशय क्षेत्र है । महासभा तीर्थ संरक्षणी से अनुदान दिया है । धर्मशाला व त्यागी भवन की आवश्यकता है।
तोन्डूर :- यह तिण्डिवनम् से २५ कि. मी. और जिन्जी से १५ कि. मी. पर है । इस गाँव के दक्षिण में एक छोटा सा पहाड़ है। इसे पन्चपाण्डवमलै कहते हैं । इसमें दो गुफायें और कई शय्यायें हैं । गुफा में २ फुट ऊँची तीर्थकर प्रतिमा है ।
इस गाँव में 'बलुवामोलि पेरुपल्लि' नाम का मन्दिर था । शिलाशासन से पता चलता है कि इस
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