Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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सलुक्क :- वन्दवासी से करीब ३ कि.मी. पर यह गाँव है। यहाँ प्राचीन खण्डहर में एक छोटा सा मन्दिर है। यहाँ तीर्थंकर की मूर्ति है। इस भगवान् को अजैन लोग भी पूजते हैं । इस गाँव में १५ वर्ष पूर्व जमीन खोदते समय धातु की प्रतिमायें निकली थी परन्तु उन्हें सरकार ने अपने अधिकार में कर लिया है। यहाँ कोई श्रावक का घर नहीं है। पहले के जमाने में काफी जैन लोग रहे होंगे ? नहीं तो जिनालय होना, जमीन में प्रतिमायें निकलना कैसे संभव है ? शैव नैनार के कुछ घर है। वे पहले जैन थे। अब भी उनका आचार-विचार जैनों का सा है ।
बिरुदूर :- यह गॉव वन्दवासी से २ कि.मी. पर है। यहाँ जैनों के ६० घर है । आदिनाथ भगवान् का एक जिनमन्दिर है। यह मन्दिर आरकाड के नवाब (मुस्लिम राजा) के जमाने का है। इस मन्दिर के लिए नवाब की दी हुई जमीन है । मूलनायक यक्ष-यक्षी सहित है। शासन देवी का मन्दिर है। अन्य धातु की मूर्तियाँ हैं। मानस्तम्भ है । एक सभा मण्डप भी है। धर्म के प्रति लोगों में अभिरुचि है। जीर्णोद्धार की जरूरत है।
नेल्लियांगुलम :- यह विरुदूर से २ कि.मी. पर है। यहाँ एक जिनमन्दिर है । मूलनायक नेमिनाथ भगवान् है। अन्य धातु की मूर्तियाँ हैं । शासन देवताओं की मूर्तियाँ भी है । एक सभा मण्डप है जिसमें नेमिनाथ भगवान् का पूरा जीवन चरित्र चित्रित है। मुख्यद्वार के दॉयी ओर एक कमरे में वेदी है जिसमें चौबीस भगवान् विराजमान है। कुष्माण्डिनी देवी भी बगल में विराजमान है। यहाँ पर एक संपन्न, दानी एवं धर्मात्मा जयपाल नैनार नाम के व्यक्ति थे। उन्होंने अपने जीवनकाल में लाखों रुपये दान में खर्च किये थे । यहाँ के मन्दिर का खर्च तथा उसका निर्वाह उन्हीं के जिम्मे में था । जहाँ कहीं भी पंचकल्याण होते उनका सारा खर्च स्वयं किया करते थे। वे जैन शास्त्र के अच्छे जानकार भी थे।
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