Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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है। यह गॉव छोटा है मगर मंदिर बड़ा है। इस गॉव में जैनियों के लगभग बीस घर है। एक बड़े भारी परकोटे के अन्दर तीन मंदिर है। मूलनायक कुन्थुनाथ भगवान् हैं। इस मंदिर का निर्माण पल्लव नरेश नन्दीवर्म के द्वारा ई.८०६-८६६ में हुआ है। वास्तुकला का एक अद्भुत नमूना
है 1
इस मंदिर के दक्षिण भाग में २५ सीढ़ियाँ चढ़ने पर महावीर भगवान् का मंदिर है। यह १२ वीं सदी का है । उत्तर में आदिनाथ भगवान् का मंदिर है । यह १५ वीं सदी का है । उसके बगल में कूष्माण्डी यक्षी का मंदिर है। यह भी १५ वीं सदी का है। दक्षिण पश्चिम के आखिर में ब्रह्मदेव मंदिर है । पार्श्वनाथ भगवान् का भी एक जिनालय है तथा देवीजी के मंदिर के बगल में मण्डप है । सामने दीवाल पर श्री १०८ अकलंकदेव की पादचिह्न, पीछी, कमण्डुल, पुस्तक आदि कोरी हुई मौजूद है । करन्दै - तिरुप्पनमूर के बीच में एक छत्री है। वह अकलंकदेव की समाधि है ।
इन मंदिरों के बारे में कहना यह है कि अत्यन्त प्राचीन होने के कारण पहले से ही ये मंदिर निर्मित थे परन्तु राजा लोगों ने बाद में सिर्फ जीर्णोद्धार किया है। यहाँ १८ शिला शासन है । कुन्थुनाथ भगवान् के जो मंदिर है उसके गोपुर के अन्दर का शिलालेख पल्लव नरेश नन्दिवर्मन प्रसिद्ध है । वर्धमान भगवान् के मंदिर में भी शासन है ।
महान् आचार्य अकलंकदेव के बारे में यह बात प्रसिद्ध है कि ये 'अलिपडैतांगल' नाम के स्थल में जो बुद्ध साधुगण रहते थे उनके साथ हिमशीतल महाराजा (कांजीपुरं) की सभा में शास्त्रार्थ कर जीते थे । इस जीत में करन्दै की कुष्माण्डिनी देवी की सहायता रही। एक तमिल पद्य में ये सारी बातें लिखी मिलती है ।
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