Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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और आत्मा- इन सारी अमूल्य चीजों को लोकोपकारार्थ समर्पित करते हुए, रात-दिन सदा-सर्वदा धार्मिक कार्य में संलग्न रहते थे। इन त्यागी महात्माओं के त्याग के कारण से ही जैन धर्म दिन दूना, रात चौगूना बढ़ता गया । मुनिराजों का मुख्य कार्य यह हुआ करता था कि लोगों को धर्मोपदेश देना, महोन्नत ग्रन्थ राजों की सृष्टि करना आदि ।
यहाँ समझने की बात यह है कि मुनियों का समूह संघ कहलाता था । उसके नायक आचार्य होते थे। प्राचीनकाल में मूलसंघ नाम से बहुत बड़ा संघ था । उसके अन्तर्गत चार गण थे। वे हैंनन्दिगण, सेनगण, सिंहगण और देवगण । प्रत्येक गण में गच्छ, अन्वय- ये दो अवान्तर भेद थे ।
नंदिगण संघ के मुनियों के नाम इस प्रकार है- पुष्पनन्दी, श्रीनन्दी, कनकनन्दी भट्टारक, उत्तमनन्दी गुरुवडिगल, पेरुनन्दी भट्टारक, गुणनन्दी, अज्जनन्दी, भवनन्दी भट्टारक, चन्दनन्दी आदि । तमिल भाषा में 'नन्नूल' नामक प्रसिद्ध जैन व्याकरण है । उसके रचयिता भवनन्दी भट्टारक हैं । यह व्याकरण सर्वोत्तम माना जाता है । इसके बराबर दूसरा कोई व्याकरण है ही नहीं। आज तक जैन-अजैन सारे के सारे इसी व्याकरण का उपयोग करते हैं ।
सेनगण संघ के मुनिगण के नाम है- चन्द्रसेन, इन्द्रसेन, धर्मसेन, कन्दसेन और कनकसेन आदि । ये सब सेन संघ के मुनिराज थे । देवसंघ के मुनियों में तिरुतक्कदेवर ने 'जीवकचिन्तामणी' महाकाव्य की रचना की । तोलामोलिदेवर ने 'चूड़ामणी' काव्य की रचना की है। ये काव्य जैन-अजैन लोगों के द्वारा सर्वश्रेष्ठ मानकर उपयोग किये जाते हैं।
मुनि वज्रनन्दी ने विक्रम संवत् ५२६ (ई. ४७०) में 'द्रविड़ संघ' की स्थापना की थी। इसके बारे में ए. एन. उपाध्याय ने अपने प्रवचनसार भूमिका में जिक्र किया है। इस संघ के मुनिगणों ने तमिल ग्रंथों की रचना भी की थी। 'द्रविड संघ' के मुनियों के बारे में मैसूर शिलालेख में कहा गया है।
श्रीमद् दमिल संघे ऽस्मिन् नन्दिसंघोस्त्यरूंगला ।
अन्वयो भाति निःशेष शास्त्र साराधिपाटकैः ।। इसका मतलब यह है कि दाविड़ संघ नन्दिसंघ के अन्तर्गत था । इसके आचार्यगण शास्त्रसागर के पारंगत थे । मैसूर शिलालेख में द्राविड़ संघ के आचार्यों के नाम इस तरह बतलाये गये हैंत्रिकालमुनि भट्टारक, अजितसेन भट्टारक, शान्तिमुनि, श्रीपाल जैविधर आदि ।
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