Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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जैन धर्म की अर्जिकायें
इन्हें अर्जिका और गउन्दी के नाम से पुकारा जाता है। तमिलनाडु के शिलालेख में इनका नाम 'कुरत्तियर' बतलाया गया है, जैसे- तिरुच्चारणत्तु कुरत्तिगल, अरिष्टनेमि कुरत्तिगल, कनकवीर कुरत्तिगल आदि ।
प्राचीनकाल में तमिल प्रान्त में जैन धर्म के प्रचार और प्रसार के कार्य में अर्यिका माताओं की सेवाएँ कम नहीं थीं बल्कि बड़ी महत्त्व की थी। आर्यिका माताओं से मिलने में और धर्म श्रवण करने में मुमुक्षु महिलाओं को काफी सुविधा रहती थी। इसलिए महिला समाज में, जैन धर्म का प्रचार कार्य, त्यागशील आर्यिकाओं से ज्यादातर हुआ करता था । ये मातायें कई जगह महिलाओं के लिए विद्याकेन्द्र आदि की स्थापना कर जैन धर्म और नीति धर्म (जैन-अजैनों के योग्य नीति प्रधान आचार शास्त्र) का प्रचार-प्रसार करती थी। नीति धर्मों के उपदेश के कारण सामान्य लोग भी आकर्षित हो जाते थे । उस समय के शिलालेख इन सभी बातों को अभिव्यक्त करते हैं कि आर्यिका माताओं की सेवाएं अमूल्य थी । इसे उदाहरण के रूप में समझ सकते हैं कि तमिल प्रान्त के साउथ आर्काड जिले में जिंजी से दस मील की दूरी पर 'विडाल' नाम का गाँव है । इस गाँव में एक बड़ा पहाड़ है। उस पहाड़ की गुफा में 'गुणवीर कुरत्ति' नाम की आर्यिका माताजी ने पाँच सौ महिलाओं को शास्त्राध्ययन (पठन-पाठन) कराती थी । यह बात यहाॅ के शिलालेख से ज्ञात होती है । आज भी वह गुफा मौजूद है ।
इस तरह साधु-साध्वियों द्वारा तमिलनाडु प्रान्त में जो धार्मिक सेवाऍ हुई थीं, उसका पूरा विवेचन करना सर्वथा अशक्य है । "हमें यह शंका उठती है कि साधु-साध्वियों के कारण जैन धर्म का प्रचार-अविरल चलता रहता है । यदि इसे रोकना हो तो (जैन धर्म के ) प्रचार कार्य में लगे हुए साधु-साध्वियों को खत्म करना होगा । इसके बिना उन लोगों का (जैनियों) प्रचार रोका नहीं जा सकता ।” मानो इसी उद्देश्य से साम्प्रदायिक विद्वेषियों ने मधुरा के (दक्षिण) अन्दर आठ हजार मुनिराजों को शूली पर चढाकर खत्म किया हो। इस तरह का अन्याय दुनियाँ में और कहीं नहीं हुआ होगा । मुनिराजों का यह कैसा त्याग ? धर्म के लिये जीवन को तुच्छ समझकर शूली पर चढ़ जाना ही वास्तविक त्याग है । वे त्यागी महात्मा लोग धर्म के सामने अपने नश्वर शरीर को बिलकुल तुच्छ समझते थे । धर्मरक्षा में जीवन बलिदान कर अपने को धन्य समझते थे । उन महात्माओं का यही विचार था कि जीवन को छोड़ देंगे परन्तु धर्म रक्षण करेंगे । कदापि अन्य धर्म स्वीकार नहीं करेंगे । इस तरह के त्यागियों के अभाव के कारण से ही तमिलनाडु आज जैन धर्म के प्रचार-प्रसार से रिक्त पड़ा है I
कोई भी धर्म तात्कालीन राज्य की सहानुभूति के बिना कभी भी पनप नहीं सकता । 'यथा राजा
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