Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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भी कुछ मुस्लिम लोग अपने नाम के साथ 'जैन अल्लाउद्दीन' 'नैनार मुहमद' लिखते हैं। ये सब जैन परंपरा के हैं। धर्म को छोड़ा मगर जैन शब्द को नहीं छोड़ सके। उसे अपने नाम के साथ लिखते ही हैं।
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तमिल भाषा में पाठशाला को 'पल्लि' कहते हैं। तमिलनाडु में मुस्लिम की मस्जिद को पल्लिवासल के नाम से पुकारा जाता है । जैनों की 'पल्लि' पल्लिवासल के नाम से बदल दी गई है। इस तरह बगाव के समय जैन धर्म छिन्न-भिन्न होकर नष्ट-सा हो गया था ।
जो जैन, मत परिवर्तित होकर हिन्दू बन गये, वे अपने आचरण को नहीं छोड़ सके । उन्होंने अपने-अपने आचरण को हिन्दू धर्म में मिला दिया ।
आगम सार
★ अहिंसा संयम और तप धर्म के लक्षण है । जिसका मन सदैव धर्म में रमण करता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं ।
* क्रोध को शांति से, मान को नम्रता से, माया को सरलता से, लोभ को सन्तोष से जीतो । ★ धर्म मेरा जलाशय है, ब्रह्मचर्य शान्ति तीर्थ है, आत्मा की निर्मल भावना पवित्र घाट है; जहाँ पर (आत्म स्वरूप में) स्नान कर मैं कर्म मल से मुक्त हो जाता हूँ ।
★ एक माया सहस्रों सत्यों को नष्ट कर देती है।
* लाभ से लोभ बढ़ जाता है ।
* सद्गृहस्थ धर्मानुकूल ही आजीविका करते हैं।
* सरल आत्मा में ही धर्म ठहर सकता है ।
* सुव्रती साधक कम खाये, कम पीये, कम बोले ।
* क्षमा, सन्तोष, सरलता और नम्रता- ये चार धर्म के द्वार है ।
* तपों में ब्रह्मचर्य तप श्रेष्ठ है ।
★ हे धीर पुरुष ! आशा, तृष्णा और स्वच्छन्दता का त्याग कर ।
* जो अपने प्राप्त लाभ में सन्तुष्ट रहता है और दूसरों लाभ की इच्छा नहीं करता, वह सुखपूर्वक सोता है।
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