Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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जमीन-आसमान का अंतर है। यहाॅ सहस्रों संपन्न धार्मिक जैन परिवार रहते थे । गुरुकुल, आश्रम, मुनिसंघ, आर्यिका संघ आदि सब कुछ था । लगभग ८४ जैन मंदिर थे । आज लगभग १०० दिगम्बर जैन परिवार इस नगरी में रहते हैं। एक नवनिर्मित जिनालय है। मूल नायक महावीर स्वामी है। सफेद पाषाण की पद्मासनस्थ भव्य प्रतिमा है ।
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तिरुप्पत्तिकुन्ट्रं- यह कांजीपुरम् से पश्चिम की ओर दो किलोमीटर की दूरी पर है । यही जिनकांची कहलाता है | यहाॅ बहुत बड़ा जिनमंदिर है। यहाॅ पर विराजमान भगवान् का नाम त्रैलोक्यनाथ है । यहाँ के अभिलेख द्वारा जाना जाता है कि मल्लिषेण, वामनाचार्य के शिष्य परवादि मल्ल पुष्पसेन वामनाचार्य नाम के मुनिराज के प्रयत्न से इस मंदिर का गोपुरम् बनवाया गया है । दूसरा शासन (तमिलनाडु में शिलालेखों को शासन के नाम से कहने की परिपाटी है) वामनाचार्य और मल्लिषेणाचार्य के विषय में बताता है । इस मंदिर के कोरनाम पेड़ के नीचे इस महान् आचार्यों के चरण चिह्न विराजमान है । मल्लिषणाचार्य की उल्लेखनीय बात यह है कि इनके द्वारा तमिल में 'मेरुमन्दरपुराणं' और 'नीलकेशी' तर्क ग्रंथ की 'समय दिवाकरं' नाम की व्याख्या लिखी गई है ( इन दोनों को प्रो. ए. चक्रवर्ती नैनार एम.ए., आई.ई.एस ने अंग्रेजी भूमिका के साथ मुद्रित करवाया है ) और एक शासन बतलाता है कि २००० कुजि जमीन इस मंदिर के लिए दान में दी गई है ।
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एक शासन से यह बात मानी जाती है कि इस मंदिर के लिए 'कैतडुप्पर' नाम के ग्रामवासियों ने ऋषभ समुदाय के वास्ते कुआ खोदने के लिये जमीन दी है, यह पवित्र क्षेत्र है । पहले यहाॅ एक विद्यापीठ था । भट्टारक मठ भी था। इस मंदिर में चोल, पल्लव और विजयनगर राजाओं की चित्रकारी अंकित है । पहले चार मठ थे । दिल्ली, कोल्हापुर, जिनकांजी और पेनकोंडा । इनमें से जिनकांजी मठ यहीं
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