Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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कार्याध्यक्ष ( दक्षिण संभाग)
अध्यक्ष की कलम से.......
कार्य के प्रारम्भ में भगवान की जय बोलिए । अन्तः करण के दृढ़ कपाटों को सहज ही खोलिए । ।
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मद्रास और सम्पूर्ण तमिलनाडु की जैन समाज के लिए यह परम सौभाग्य की बात है कि अखिल भारतीय दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी सभा का यह महत्त्वपूर्ण अधिवेशन चेन्नई में सम्पन्न हो रहा है । वास्तव में उत्तर दक्षिण का आध्यात्मिक एवं साहित्यिक आदान-प्रदान सहस्रों वर्षों से होता आ रहा है । सभी तीर्थंकर उत्तर में जन्मे और वहीं से निर्वाण प्राप्त किया, जबकि सभी प्रमुख जैन आचार्यों ने दक्षिण में जन्म लिया और उत्तर भारत में जैन धर्म का व्यापक प्रचार किया। इसी महत्त्वपूर्ण क्रम में आज यहाँ के प्राचीन तीर्थ स्थलों, शास्त्रों और अन्य धार्मिक आयतनों के जीर्णोद्धार, सुरक्षा, प्रचार एवं प्रसार की व्यापक समस्या हमारे सामने है । अभी तक उत्तर के जैनियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है, परन्तु अभी बहुत काम बाकी है। इसके लिए एक प्रामाणिक सर्वे और स्थलों का चयन जरूरी है। ये सभी धर्म स्थल तीर्थंकरों के समवशरण के प्रतीक हैं- इनकी रक्षा होनी ही चाहिए। आप सबका सभी प्रकार का सहयोग परमावश्यक है ।
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रत्नत्रय अर्थात् सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र सम्मिलित रूप से मोक्ष प्रदाता हैं । इस सिद्धान्त को हमें जीवन में उतारना ही होगा। आशय यह है कि पूर्ण विश्वास हमारा हृदय है, पूर्ण ज्ञान हमारा मस्तिष्क है और पूर्ण चारित्र पालन हमारा शरीर हैं इन तीनों के योग से ही हमारा यह लोक और परलोक सुधरेगा। आज हमें आपसी एकांगी मतभेद और हठ को भूलाकर धर्म को उसकी सम्पूर्णता में समझना ही होगा ।
आज विज्ञान और उद्योगों का युग है । यथार्थ और व्यवहार का युग है । भावना और कल्पना का यथार्थ से जोड़ना होगा । अन्य धर्मों, विश्वासों और विचारों के प्रति उदार दृष्टि रखनी होगी । जैन धर्म का मर्म भी यही है
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आप सब के यहाँ आने से हमें बहुत प्रसन्नता हुई है और उत्साह मिला है । यह सिलसिला चलता रहे, यही भावना है ।
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भावना ज्ञान से पुष्ट हो और आचरण से प्रमाणित हो तो हमारा नर-जन्म धन्य हो जाएगा । बोलिए भगवान महावीर की जय ।
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भवदीय एम. के. जैन
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