Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
जन्में और पनपे । चौबीस तीर्थंकरों का जन्म से निर्वाण तक का जीवन उत्तर भारत में ही संपन्न हुआ । तीर्थंकरों का विहार दक्षिण भारत में विशाल मुनि-संघों के साथ हुआ था किन्तु कब, कैसे और किस दिशा से यह निश्चित कर पाना आज तक पूर्णतया संभव नहीं हो सका है । धार्मिक विद्वेष और जातिगत वैमनस्य के कारण इतिहास लुप्त होता रहा। फिर भी भारतीय इतिहास के अनेक विशेषज्ञ यह तो स्वीकार करते ही हैं कि अंतिम श्रुतकेवली भद्रबाहु की दक्षिण-यात्रा के साथ दक्षिण भारत में जैन धर्म का बीजारोपण हुआ ।
कैसा अनोखा संयोग है कि सभी तीर्थंकर उत्तर भारत में जन्मे और वहीं से मोक्ष गये, जबकि जैन धर्म के प्रायः सभी आचार्य, कवि और सिद्धान्तग्रन्थों के रचयिता दक्षिण भारत में हुए। मुनि परंपरा का निर्वाह भी प्रायः दक्षिण से ही हो रहा है अतः उत्तर और दक्षिण जैन धर्म की दो भुजाएं हैं ऐसा कहना अनुचितन होगा ।
यह भी जनश्रुति है कि चंन्द्रगुप्त मौर्य के समय में उत्तर भारत में बारह वर्ष का भंयकर अकाल पड़ा । उस समय श्रुतकेवली भद्रबाहु ने बारह हजार मुनियों के साथ दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया । यह मुनिसंघ दो भागों में विभाजित हो गया । अलग-अलग मार्गों से कर्नाटक और तमिलनाडु में ये मुनि पहुँचे । अनेक शिलालेखों और अवशेषों से इस पक्ष की पुष्टि होती है । उस समय केरल और आन्ध्रप्रदेश मुनिसंघ के लिए अनुकूल न थे । अतः यह लगभग स्पष्ट है कि ईसा पूर्व तीसरी शती में दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रवेश हुआ । यहाँ यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि तमिलनाडु और कर्नाटक में जैन धर्म इससे भी पहले अवश्य ही रहा होगा, क्योंकि बिना किसी स्वस्थ और विश्वसनीय पूर्ववर्ती आधार के इतने बड़े मुनिसंघ वहाँ कैसे जा सकते थे ।
यद्यपि तमिलनाडु की अपेक्षा कर्नाटक में जैन मुनियों, मन्दिरों और गतिविधियों को पर्याप्त अधिक संरक्षण मिला, समृद्धि मिली, फिर भी तमिलनाडु में जैन धर्म का बहुमुखी विस्तार होता रहा । अनेक साम्प्रदायिक संघर्षों के बावजूद यहाँ के अनेक पर्वत, गुफाएं और मंदिर सहस्रों मुनियों से अभिमंडित होते रहे और अध्यात्म साधना में लीन रहे । साहित्य सृजन और सिद्धान्त ग्रंथ लेखन में भी यहाॅ प्रचुर एवं महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। यह अनेक विद्वानों द्वारा प्रकाश में भी लाया गया है । तमिलनाडु के दिगम्बर जैन प्रख्यात एवं प्राचीन मन्दिरों, पर्वतों और गुफाओं का सचित्र संदर्शन कराना अत्यन्त आवश्यक और महत्वपूर्ण है ।
Jain Education International
31
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org