Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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इसके अलावा तमिलनाडु के रामनाथपुरम् जिले में बहुत प्राचीन ब्राह्मी शिलालेख मिले हैं । वे अशोक के स्तंभों के शिलालेख से (अक्षरों से मिलते-जुलते हैं । इतिहासवेत्ता उन्हें ई. पूर्व तीसरी सदी के पहले का मानते हैं । यह शिलालेख जैन संस्कृति से संबन्धित है। तमिलनाडु के इन शिलालेखों की ब्राह्मीलिपि और लंका द्वीप के शिलालेखों की लिपि में समानता है, ऐसा इतिहासवेत्ताओं का मत है । अतः ये दोनों समकालीन होने चाहिये। इस कारण ये दोनों ई. पूर्व तीसरी सदी से पहले के माने जाते हैं । ऐसी हालत में तमिल प्रान्त के अन्दर जैन धर्म का अस्तित्व ई. पूर्व तीसरी सदी से पहले मानने में किसी तरह की हिचकिचाहट की जरूरत नहीं है ।
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और एक बात यह है कि पाण्डवों के जमाने में, अर्थात् कृष्णजी के समय में जैन धर्म का अस्तित्व तमिलनाडु में स्वीकार किया जाता है । यह काल नेमिनाथ भगवान् के तीर्थ के समय का है । इसका आधार (प्रमाण) तोलकाप्यं पोरुल अधिकार हर सूत्र की व्याख्या में है ।
और एक अन्य प्रमाण यह है कि हम जैन लोगों के साथ चेर, चोल, पाण्ड्य नरेशों को बेटी लेन-देन का व्यवहार भी होता था । इसका आधार संघ काल के ग्रन्थ में हैं। संघ काल दो हजार साल का माना जाता है । इन लोगों को उस जमाने में 'अरुलालऐ' अर्थात् करुणा वाले के नाम से पुकारते थे अर्थात् जैनों को करुणाशील कहना उचित है क्योंकि ये लोग अहिंसावादी थे । इससे पता चलता है कि ई. पूर्व कई सौ सालों से तामिलनाडु में जैनों का निवास था । उस समय के नरेशगण भी जैन हुआ करते थे । इन लोगों का आपस में बेटी लेन-देन व्यवहार भी होता था ।
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यहाॅ पर एक विशेष बात यह है कि कृष्णजी के वंश वाले अठारह गृहस्थ (पतिणेणकुडि) व्यवसायी अरुलालऐ थे । ये सब जैन धर्मावलम्बी थे । इन लोगों के उत्तर भारत से दक्षिण भारत आने के बाद इस प्रान्त में कृष्ण और बलराम- इन दोनों को पूजने की परंपरा भी चलने लगी । इससे समझना यह है कि ई. पूर्व कई सदी से अर्थात् कृष्णजी और पाण्डवों के जमाने से जैन धर्म तमिल प्रान्त में विद्यमान था न कि आचार्य भद्रबाहु महाराज के जमाने से। इससे अच्छी तरह पता लगता है कि तमिलनाडु में जैन धर्म प्राचीनकाल से विद्यमान था ।
जैन धर्म उत्तर से दक्षिण की ओर भी
भारत की पावनतम भूमि विश्वभर के देशों में अध्यात्म की उच्चता, प्राकृतिक सुन्दरता, संपन्नता और वीरता तथा विद्या के क्षेत्रों में प्रथम रही है तथा भारत में भी उत्तर भारत को यह गौरव अनेक कारणों से प्राप्त है । जैन धर्म की जन्म भूमि उत्तर भारत है । शैव, वैष्णव और बौद्ध धर्म भी यही
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