Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तदनन्तर आचार्य धरसेन के समक्ष उन दोनों साधुओं ने विनयपूर्वक विद्या-सिद्धि संबन्धी सारे वृत्तान्त को कह सुनाया । धरसेनाचार्य 'बहुत अच्छा' कहकर सन्तुष्ट हुए। तद्नन्तर आचार्यश्री ने शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र और शुभ वार में ग्रन्थ को पढ़ाना प्रारंभ किया। इस तरह क्रम से पढ़ते-पढ़ते शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन पूर्वाहून काल में ग्रन्थ समाप्त किया गया । इससे सन्तुष्ट हुए भूत जाति के व्यन्तर देवों ने इन दोनों में से एक की पुष्प, बलि, शंख और सूर्य जाति के वाद्य विशेष के नाद से बड़ी भारी पूजा की । उसे देखकर धरसेन भट्टारक ने उनका भूतबलि नाम रखा तथा जिनकी भूतों ने पूजा की है। और अस्त-व्यस्त दन्त-पंक्ति को दूर करके दॉत समान कर दिये है, ऐसे दूसरे साधु का नाम श्रीधरसेन आचार्य ने पुष्पदन्त रखा ।
तदनन्तर वहाँ से भेजे गये साधु-महात्माओं ने गुरु की आज्ञा पाकर अंकलेश्वर (गुजरात) आये और वहीं वर्षाकाल व्यतीत किया। गुरु महाराज का उन दोनों को वहां से भेजने का विशेष कारण यह था कि उन्हें अपनी अल्पायु का भान होने से उन दोनों साधुओं को वहां से विहार कर अन्यत्र चार्तुमास करने की आज्ञा दी थी। अतः वे दोनों अंकलेश्वर आये और वहीं पर वर्षाकाल व्यतीत करने लगे ।
वर्षाकाल समाप्त करने के बाद पुष्पदंताचार्य जिनपालित को साथ लेकर वनवासी देश को चले गये तथा भूतबलि भट्टारक तमिल देश को चले गये । तद्नन्तर पुष्पदन्ताचार्य ने जिनपालित को दीक्षा देकर बीस प्ररूपणा गर्भित सत्प्ररूपणा के सूत्र बनाकर दिखाये तथा जिनपालित मुनि को पढ़ाकर उन्हें भूतबलि आचार्य के पास भेज दिया ।
भूतबलि महाराज ने जिनपालित के द्वारा दिखाये गये सूत्रों को देखकर निर्णय किया कि पुष्पादन्ताचार्य अल्पायु के हैं और हम दोनों के बाद महाकर्म प्रकृति प्राभूत का विच्छेद हो जायेगा । ऐसा विचार कर आचार्य भूतबलि महाराज ने द्रव्य प्रमाणानुगम की ग्रन्थ के रूप में रचना कर दी । इसलिए इस खण्ड सिद्धान्त ( षट् खण्ड सिद्धान्त) के कर्ता आचार्य भूतबलि और पुष्पदन्त कहे जाते हैं । अनुग्रन्थकर्ता गौतम स्वामी है तथा उपग्रन्थ कर्ता राग-द्वेष और मोह से रहित भूतबलि पुष्पदन्त आदि अनेक आचार्य हैं। I
धरसेनाचार्य का समय :- नन्दिसंघ की प्राकृत पट्टावली में ६८३ वर्ष के अन्दर ही धरसेनाचार्य का काल माना गया है अर्थात् भगवान् महावीर के बाद ६८३ वर्ष के अन्तर्गत काल में ही धरसेनाचार्य हुए । यह समय ई. सन् ७३ के लगभग का है ।
आचार्य पुष्पदन्त और भूतबलि का काल भी इन्हीं के आसपास का माना जाता है
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