Book Title: Tamilnadu Digambar Tirthkshetra Sandarshan
Author(s): Bharatvarshiya Digambar Jain Mahasabha Chennai
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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संयुक्त महामंत्री की कलम सेदिगम्बर जैन तीर्थों की सुरक्षा की परमावश्यकता
जैन धर्म की संस्कृति अत्यन्त प्राचीन है। इस संस्कृति ने देश, समाज पर अपनी अमिट छाप अंकित की है। संस्कृति ही राष्ट्र और समाज की धरोहर है, थाती है । यह संस्कृति स्थापत्य कला के वैभव से समृद्ध है। भारतवर्ष को इस संस्कृति की जो महान् देन है वह है- स्थापत्य कला । स्थापत्य कला में जैन कला का सर्वोपरि स्थान है। इसके पर्याय है- प्राचीन जैन मन्दिर । दक्षिण भारत में जैन संस्कृति एवं स्थापत्य कला का अपना एक विशेष महत्व है । यहाँ के दर्रे-दर्रे में जैनत्व की प्रतिष्ठा अनुगूजित है। पहाड़ों की कंदराओं एवं मन्दिरों के जिनबिम्बों में वह सत्यता प्रतिष्ठापित हो रही है। तमिलनाडु के जैन तीर्थ स्थल -
संपूर्ण तमिलनाडु के दिगम्बर जैन धर्म स्थलों को कुल छह शाखाओं या चक्रों में विभाजित करके समझा जा सकता है । इसके बाद प्राथमिकता के आधार पर जीर्णोद्धार, सुरक्षा एवं विकास का पुण्यकार्य हाथ में लिया जा सकता है ।
ये छह चक्र हैं -- १. कांजीवरम् चक्र २. वन्दवासी चक्र३. आरणी-सेन्जी चक्र ४. टिण्डीवनम् चक्र ५. मदुरै चक्र ६. सिद्धनवासनमलै चक्र
उक्त सभी चक्रों में २०० से अधिक तीर्थ-स्थल हैं। इनमें से अधिकांश के लिए जीर्णोद्धार एव धनराशि की मानव-शक्ति की महती आवश्यकता है। प्राथमिकता के आधार पर निम्नलिखित स्थलों को पहले लिया जा सकता है
कांची चक्र (सर्किल) में तिरुनरकोड्रम और जिनकांची के अन्तर्गत अनेक प्रकार का काम होना है। करन्दै क्षेत्र में तिरुमनिगिरि तथा वन्दवासी क्षेत्र में एलंगाडु, सातमंगलम एवं पून्नूरमले में पर्याप्त जीर्णोद्धार एवं नव-निर्माण जरूरी है । नार्थ आर्काट जिले के अन्तर्गत आरणी क्षेत्र में नगरम् एवं पूंडी क्षेत्र विचारणीय है। तिरुमलै क्षेत्र में पर्याप्त अच्छी व्यवस्था है। इसे और अधिक संवारा जा सकता है । इसी प्रकार के क्षेत्रों का सर्वे होना चाहिए।
चेन्नई महानगर में उत्तर भारत से आये और बसे दिगम्बर जैनों ने प्राचीन जैन मंदिर का जीर्णोद्धार कराकर उसे एक अत्यन्त भव्य जिनालय का रूप दिया है । खण्डेलवाल समाज ने स्वतंत्र रूप से विशाल जिनालय का निर्माण कराया है। इसमें अनेक धार्मिक एवं सामाजिक कार्य होते रहते
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