Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 12
________________ ( VII ) अर्थात् नागेन्द्रगच्छीय उदयप्रभसूरि के गुरु थे तथा शक संवत् १२१४ (ई. १२६३) में दीपावली, शनिवार के दिन श्रीजिनप्रभसूरि की सहायता से मल्लिषेणसूरि ने 'स्याद्वादमंजरी' की रचना सम्पूर्ण की। अतः स्पष्ट है कि स्याद्वादमंजरी के प्रणेता श्वेताम्बर जैनाचार्य थे। मल्लिषेण का पाण्डित्य स्याद्वादमंजरी में मंजरी की तरह सुवासित है। निःसन्देह वे बहुश्रुत मनीषी थे तथा उत्कृष्ट व्याख्याकार भी। स्याद्वादरत्नावतारिका यह विद्वद्रत्नभोग्य टीका, नव्यन्याय की शैली में रचित पाण्डित्यपूर्णरचना है। इस विद्वन्मनोरंजिनी स्याद्वादरत्नावतारिका के व्याख्याता-प्रणेता आचार्यश्री रत्नप्रभसूरि हैं । भाषात्मक जटिलता, अर्थकाठिन्य, दूरान्वियता के कारण यह व्याख्या नितान्त क्लिष्ट है। आज अधिकारी विद्वानों को भी इसे पढ़ाने में विशिष्ट सश्रम प्रयास करना पड़ता है । उपाध्याय यशोविजयकृत 'स्याद्वादमंजूषा' उपाध्याय यशोविजयजी का जन्म सत्तरहवीं शताब्दी में हुया था। वे श्रीमद् आनन्दघनजी के समकालीन थे। योगिराज आनन्दघन का गहन प्रभाव भी उपाध्यायश्री पर स्पष्ट परिलक्षित होता है। उपाध्यायश्री आगमों के प्रखर ज्ञाता होने के साथसाथ दार्शनिक, ताकिक एवं सिद्धसारस्वतीक थे। उन्होंने संस्कृत में न्याय व्याकरण, अध्यात्म जैसे गहन विषयों पर १०८ ग्रन्थों की रचना की थी। उन्होंने उत्कृष्ट विद्वान् ब्राह्मणों से उपाध्यायपद प्राप्त किया था।

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