Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 14
________________ ( IX ) प्रस्तुत टीका में प्रथम श्लोक से तृतीय श्लोक पर्यन्त प्रभु वीर के चार अतिशय सहित यथार्थवाद का विवेचन तथा जिनशासन की उत्कृष्टता प्रदर्शित है । तदनन्तर चतुर्थ श्लोक से दशम श्लोक पर्यन्त न्यायवैशेषिक सिद्धान्तों का विधिवत् विवेचन सरलता से प्रस्तुत किया गया है। न्यायवैशेषिक विमर्श में निम्न बिन्दु उद्भावित हैं(१) सामान्य और विशेष पदार्थ भेदरहित है । (२) वस्तु को एकान्त नित्य अथवा एकान्त अनित्य मानना तर्कसंगत नहीं है। (३) एक, सर्वव्यापी, सर्वज्ञ, स्वतन्त्र और नित्य ईश्वर जगत् का कर्ता नहीं हो सकता है। (४) धर्म-धर्मी में समवाय सम्भव नहीं बन सकता। (५) सत्ता (सामान्य) भिन्न पदार्थ नहीं है । (६) ज्ञान प्रात्मा से भिन्न नहीं है । (७) आत्मा के बुद्धि आदि गुणों के नाश होने को मोक्ष नहीं कहना चाहिए। (८) आत्मा सर्वव्यापक नहीं हो सकती है। (६) छल, जाति, निग्रहस्थान आदि तत्त्व मोक्ष के कारण नहीं हो सकते।

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