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AMIMIMIMIMAAAAAAAFAAAAAAAAAAIMIMARY है * प्रकाशकीय-निवेदन * wwwwwwwwwwwwwawww.
कलिकालसर्वज्ञ श्रीमद् हेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज विरचिता 'अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका' अभिनव 'स्याद्वादबोधिनी' टीका युक्त प्रकाशित करते हुए हमें ही अनहद प्रानन्द हो रहा है।
अन्ययोगव्यवच्छेद-द्वात्रिशिका के मूल बत्तीस a श्लोक संस्कृत भाषा में अतीव सुन्दर हैं। उन पर 'स्याद्वाद-बोधिनी' नाम से समलंकृत अभिनव टीका शास्त्रविशारद - साहित्यरत्न - कविभूषण-परम पूज्य प्राचार्य श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी महाराजश्री ।। ने सरल संस्कृत भाषा में रम्य मनोहर लिखी है । ) साथ में प्रत्येक श्लोक का अन्वय, श्लोकार्थ तथा भावार्थ भी सरल हिन्दी भाषा में अच्छा लिखा है, जो सबको अच्छी तरह समझ में आ सकेगा।
सदुपदेशक, पूज्य वाचक श्री जिनोत्तम विजयजी गणिप्रवर ने इस ग्रन्थ का सम्पादन कार्य भी स्याद्यन्त - परिपूर्ण किया है। wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww
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