Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 10
________________ ( v ) ॐ अन्ययोगव्यवच्छेदिका-द्वात्रिंशिका दार्शनिक-वागजालों में विकीर्ण अनन्त सिद्धान्तों के संक्षिप्त तथा सारभित प्रतिपादन के लिए मनीषियों ने विंशिका, त्रिंशिका तथा द्वात्रिंशिका रचनाओं का सफल सृजन किया है। इस विधा के रचनामियों में विज्ञानवादी प्राचार्य वसुबन्धु, प्राचार्य सिद्धसेन दिवाकर, प्राचार्य हरिभद्रसूरि तथा प्राचार्यश्रीहेमचन्द्र का नाम विशेष प्रादर के साथ लिया जाता है। प्राचार्य हेमचन्द्रजी ने सिद्धसेन दिवाकर की द्वात्रिंशिकाओं को अनुसृत करते हुए दार्शनिक रहस्यों से परिपूर्ण अन्ययोगव्यवच्छेदिका तथा अयोगव्यवच्छेदिका नामक दो द्वात्रिंशिकाओं की रचना की है। ये दोनों ही द्वात्रिंशिकायें भगवान महावीर की महनीय स्तुति के रूप में हैं किन्तु इनका दार्शनिक स्वरूप अक्षुण्ण तथा अक्षत है। इन द्वात्रिंशिकानों में इकतीस श्लोक उपजाति छन्द तथा बत्तीसवाँ श्लोक शिखरिणी नामक छन्द में निबद्ध है। ___ अन्ययोगव्यवच्छेदिका में दर्शनान्तरों के दोष-पक्षों का सविमर्श खण्डन प्रस्तुत है। प्रारम्भ के तीन श्लोकों में तथा अन्त के तीन श्लोकों में वीर प्रभु के अतिशय, यथार्थवाद, नयमार्ग, निष्पक्ष-शासन, अज्ञानान्धकार-निवारण आदि का सुन्दर वर्णन है। सत्तरह श्लोकों में न्याय-वैशेषिक, मीमांसादर्शन, वेदान्तदर्शन, सांख्यदर्शन, बौद्धदर्शन तथा चार्वाकदर्शन की समीक्षा एवं नौ श्लोकों में स्याद्वादसिद्धि प्रर्दाशत की गई है।

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