________________
।
II
)
निखरती गई। व्याकरण, साहित्य, दर्शन, छन्दःशास्त्र, योगशास्त्र एवम् आगम में आपने अगाध पाण्डित्य तथा अपार दक्षता प्राप्त की। श्री देवचन्द्रसूरि जी ने आपकी असाधारण प्रतिभा तथा लोकोत्तर विकास को ध्यान में रखते हुए परम प्रसन्नता से आपको प्राचार्य पद से विभूषित किया। सोमचन्द्र प्राचार्य पदवी के पश्चात् हेमचन्द्रसूरि के नाम से जगविख्यात हुए।
आचार्य हेमचन्द्र विहार करते हुए गुजरात की तत्कालीन राजधानी अणहिल्लपुर पाटण पधारे। वहाँ महाराजा सिद्धराज जयसिंह का शासन था। सिद्धराज शैवधर्मावलम्बी विवेकी राजा थे। गुणों की सच्ची परख तथा गुण-पूजा उनकी अद्भुत विशेषता थी। सिद्धराज ने आचार्यश्री हेमचन्द्र को राजसभा में आमंत्रित किया। आचार्यश्री के प्रखर पाण्डित्य से महाराजा अत्यन्त प्रभावित हुए तथा उन्होंने सविनय गुरुदेव से अनुरोध किया कि एक सरल तथा सुबोध संस्कृत व्याकरण की आप रचना करें तो विद्यार्थी-जगत् का कल्याण होगा। प्राचार्यश्री ने अणहिल्लपुर में रहते हुए ही 'सिद्धहैमशब्दानुशासनम्' की रचना की। यह अद्भुत व्याकरणग्रन्थ महाराजा के हाथी पर रखकर ससम्मान राजदरबार में लाया गया। प्राचार्य श्री हेमचन्द्र राजगुरु के रूप में सर्वत्र प्रथितप्रभावी हुए। सिद्धराज भी जैनधर्म के प्रति विशिष्ट आस्थावान बने । सिद्धराज के उत्तराधिकारी कुमारपाल तो प्राचार्यश्री को पूर्णरूप से राजगुरु ही मानने लगे थे । हेमचन्द्रसूरि के उपदेश से कुमारपाल ने अपने राज्य में जीवहिंसा, मांस, मद्य, धूत, आखेट बन्द करवाये तथा जैनधर्म के सिद्धान्तों का विशद प्रचार-प्रसार करवाया।