Book Title: Syadwad Bodhini
Author(s): Jinottamvijay Gani
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 6
________________ प्रस्तावना भारतीय मनीषा अनादिकाल से तत्त्वार्थ- निर्णय के लिए सत्यान्वेषण के नये उन्मेष समुद्घाटित करती रही है । तत्त्वदर्शी मनीषियों की पंक्ति में प्राचार्य श्री हेमचन्द्र जी महाराज अग्रगण्य श्रमणावतंस हैं । 'अन्ययोगव्यवच्छेदिका' आपके द्वारा विरचित भगवान महावीर की स्तुति है । प्रस्तुत स्तुति भावपूर्णता और दार्शनिक अर्थगाम्भीर्य से प्रोत-प्रोत है । बत्तीस श्लोकों से विलसित यह स्तुति जैनधर्म एवं दर्शन के मूलाधार को सुस्पष्ट करने में सबल सिद्ध हुई है । श्री मल्लिषेण सूरि ने अपनी विशिष्ट प्रतिभा से 'स्याद्वादमंजरी' नामक टीका ग्रन्थ के द्वारा ‘अन्ययोगव्यवच्छेदिका' के गूढ़ार्थ को उत्कृष्ट दार्शनिक रीति से उद्भावित किया है किन्तु सम्प्रति जिज्ञासु बाल-मुनियों, पिपठिषु विद्यार्थियों को स्याद्वादमञ्जरी कठिन प्रतीत हो रही है । अनेक विद्वान् भी यह चाहते हैं कि कोई सरल तथा सुबोध टीका हो, जिसके माध्यम से सरलता से इसका मूलभाव तथा स्फुटित हो सके । आचार्य प्रवर श्रीमद्विजय सुशील सूरीश्वर जी महाराज साहब ने ' स्याद्वादबोधिनी' नामक संस्कृत टीका की रचना करके सरलता से इसका गूढ़ार्थ प्रामाणिक रीति से सुस्पष्ट करने का सफल प्रयास किया है । शिष्यों-प्रशिष्यों के सादर अनुरोध से हिन्दी विवेचन के माध्यम से आपने विषयवस्तु को सहज-गम्य बनाकर हिन्दी साहित्य जगत् की शोभा भी संबंधित की है । प्रस्तुत स्याद्वादबोधिनी का आधार आचार्य श्री हेमचन्द्र की 'अन्ययोगव्यवच्छेदिका' है अतः मूल ग्रन्थकार का संक्षिप्त परिचय परमावश्यक है ।

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