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( II ) कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्य श्री हेमचन्द्र श्री हेमचन्द्र सूरि श्वेताम्बर जैन परम्परा के जाज्वल्यमान असाधारण प्रतिभाशाली विद्वान् थे। आपका जन्म ई. १०७८ में गुजरात के धन्धुका नामक ग्राम में मोढ़ वणिक जाति में हुआ था। आपका नाम चंगदेव था। पिता का नाम चाचिग (चच्च) तथा माता का नाम पाहिणी था।
एक बार श्री देवचन्द्र नाम के जैन प्राचार्य धन्धका ग्राम पधारे। चंगदेव की अवस्था मात्र पाँच वर्ष की थी। पाहिणी माता अपने पुत्र को साथ लेकर जिनमन्दिर दर्शन करने गई। आचार्य श्री देवचन्द्र उसी मन्दिर में आकर ठहरे थे। जिस समय पाहिणी जिनबिम्ब की प्रदक्षिणा दे रही थी। चंगदेव प्राचार्य देवचन्द्र महाराज के पास आकर बैठ गये। प्राचार्यश्री ने चंगदेव के असाधारण सामुद्रिक चिह्नों को सहज ही परख लिया। एक दिन वे चंगदेव के घर पधारे तथा पाहिरणी देवी से कहा कि तुम्हारा पुत्र अत्यन्त तेजस्वी है। यह गार्हस्थ्य नहीं अपनायेगा। आप इसे जैन साधु संघ में दीक्षित होने की अनुमति प्रदान करें। यह बालक जैन जगत् का भास्कर सिद्ध होगा। पाहिणी धर्मपरायणा थी अतः आचार्यश्री की आज्ञा को शिरोधार्य कर उसने दीक्षार्थ आत्म-स्वीकृति प्रदान की। चंगदेव आचार्य श्री देवचन्द्रजी की सेवा में रहने लगे। कुछ समय पश्चात् जब चंगदेव के पिता बाहर से लौटे तो इस घटना को सुनकर अतिक्रद्ध हुए। तत्कालीन मन्त्री उदयन ने उन्हें शान्त किया तथा चंगदेव की विधिवत् दीक्षा करवायी। दीक्षा के पश्चात् चंगदेव का नामकरण मुनि सोमचन्द्र हुआ। यथाशीघ्र ही सतत स्वाध्याय चिन्तन-मनन से सोमचन्द्र की प्रतिभा