Book Title: Swarup Sambodhan Parishilan
Author(s): Vishuddhasagar Acharya and Others
Publisher: Mahavir Digambar Jain Parmarthik Samstha
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स्वरूप-संबोधन-परिशीलन
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सतना के श्री शान्तिनाथ भगवान् श्री शान्तिनाथ भगवान की विशाल कायोत्सर्ग आसन वाली प्रतिमा श्री दिगम्बर जैन मंदिर, सतना की प्रमुख और अतिशयकारी प्रतिमा है। ऐसा लगता है कि सतना की समस्त जैन-समाज का सम्पूर्ण पुण्य-पुंज ही सिमट कर इस मनोहारी मूर्ति के रूप में यहाँ स्थिर हो गया है।
___ ब्यौहारी से रीवा की ओर जाने वाले राजमार्ग पर, ब्यौहारी से लगभग 15 किलोमीटर पर मऊ नाम का एक छोटा-सा ग्राम है। यही ग्राम प्रायः हजार वर्ष पूर्व एक समृद्ध कस्बा रहा होगा और इस कस्बे में जैनों की अच्छी संख्या रही होगी। श्री शान्तिनाथ भगवान् की यह मोहक मूर्ति उसी ग्राम से लगभग पचहत्तर वर्ष पूर्व सतना लायी गई थी। मूर्ति का शिल्प देखकर यह अनुमान होता है कि कल्चुरी राज्य-काल में ग्यारहवीं शताब्दी ईस्वी के आस-पास मऊ की टेकरी से अथवा किसी पास के स्थान से प्राप्त शिला-फलक पर इस मूर्ति का निर्माण किया गया था। यह प्रतिमा मध्ययुगीन मूर्ति-शैली का एक उत्तम उदाहरण है। भगवान् ध्यानस्थ खड़े हैं। उनके परिकर में चामर-धारी इन्द्र, पुष्पांजलि लिये हुए विद्याधर तथा मूर्ति के प्रतिष्ठापक श्रावक-गण यथा-स्थान अंकित हैं। चरण-पीठिका पर कोई आलेख नहीं होने के कारण तथा स्पष्ट चिह्न के अभाव के कारण यह निर्णय करना कठिन हुआ होगा कि मूर्ति किस तीर्थकर भगवान् की है, अतः सतना में "श्री शान्तिनाथ भगवान" के नाम से उनकी स्थापना तथा औपचारिक पूजा-प्रतिष्ठा की गई होगी। इस प्रकार अब वे निश्चित रूप से "श्री शान्तिनाथ" ही हैं। उनकी पूजा आराधना से चित्त को शान्ति मिलती है और मनुष्य की सारी प्रतिकूलताएँ स्वयमेव समाप्त हो जाती हैं।
रीवा के महाराज के आदेश से मूर्ति जैन समाज के हाथ में आई। रीवा और सतना दोनों जगह के लोग भगवान् को अपने यहाँ ले जाना चाहते थे, पर महाराज श्री गुलाब सिंह जी ने सतना ले जाने की अनुमति दी और इस तरह विक्रम सं. 1989-90 के बीच यह मूर्ति सतना लायी गई।
इंजी. रमेश जैन
मंत्री जैन समाज, सतना