Book Title: Suttanipato
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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१० ]
सुत्तनिपातो
[११६
यो तिण्णकथंकथो विसल्लो निब्बाणाभिरतो अनानुगिद्धो' । लोकस्स सदेवकस्स नेता तादि मग्गजिनं वदन्ति बुद्धा ॥४॥ परमं परमंऽति योऽध ञत्वा अक्खाति विभजति इधेव धम्म । त कखच्छिदं मुनि अनेजं दुतियं भिक्खुनमाहु मग्गदेसि ।।५।। यो धम्मपदे सुदेसिते मग्गे जीवति संयतो' सतीमा।। अनवज्जपदानि सेवमानो ततियं भिक्खुनमाहु मग्गजीवि ॥६।। छदनं कत्वान सुब्बतानं पक्खन्दि कुलदूसको पगब्भो। मायावी असञतो पलापो पतिरूपेन चरं स मग्गदूसी ॥७॥ एते च पटिविज्झि यो गहट्टो सूतवा अरियसावको सपो । सब्बे नेतादिसाऽति अत्वा इति दिस्वा न हापेति तस्स सद्धा। कथं हि दह्रन असंपदुळं सुद्धं असुद्धेन समं करेय्याति ॥८॥
चुन्दसुत्तं निहितं।
(६-पराभव-सुत्तं १।६ ) एवं मे सुतं। एक समयं भगवा सावत्थियं विहरति जेतवने अनाथपिण्डिकस्स आरामे। अथ खो अञ्जतरा देवता अभिक्कन्ताय रत्तिया अभिक्कन्तवण्णा केवलकप्पं जेतवनं ओभासेत्वा येन भगवा तेनुपसंकमि। उपसंकमित्वा भगवन्तं अभिवादेत्वा एकमन्तं अट्टासि। एकमन्तं ठिता खो सा देवता भगवन्तं गाथाय अज्झभासि
पराभवन्तं पुरिसं मयं पुच्छाम गोतमं । भगवन्तं पुठ्ठमागम्म कि पराभवतो मुखं ॥१॥ सुविजानो भवं होति सुविजानो पराभवो। धम्मकामो भवं होति धम्मदेस्सी पराभवो ॥२॥ इति हेतं विजानाम पठमो सो पराभवो। दुतियं भगवा ब्रूहि किं पराभवतो मुखं ।।३।। असन्तस्स पिया होन्ति सन्ते न कुरुते पियं । असतं धम्मं रोचेति तं पराभवतो मुखं ॥४॥
१C. अननुगिद्धो.
२R., C. सातो.
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